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उत्तर-प्रकृतिबन्ध : प्रकार, स्वरूप और कारण-५ ३६९ (५) बन्धननाम कर्म-शरीर आदि के रूप में परिणत होने वाले पुद्गलों का सम्बन्ध-सम्मिलन-संधान होने पर शरीर आदि बनते हैं। उनसे सम्बन्ध कराने का माध्यम बनता है-बन्धननामकर्म। बन्धननामकर्म का स्वरूप यह है-जिस कर्म के उदय से पूर्व में ग्रहण किये हुए औदारिक आदि शरीर-पुद्गलों के साथ नवीन ग्रहण किये जाने वाले तथा वर्तमान में ग्रहण किये जा रहे शरीर-पुद्गल परस्पर बन्धन को प्राप्त हों, उसे बन्धननाम कर्म कहते हैं। बंधन नाम कर्म औदारिक आदि शरीरों के पुद्गलों को वैसे ही बांध देता है-जोड़ देता है, जैसे-लाख आदि चिपकने वाले पदार्थों से दो वस्तुएँ आपस में जोड़ दी जाती हैं। यदि बन्धन नामकर्म न हो तो शरीराकार-परिणत पुद्गलों में वैसी ही अस्थिरता रहती है, जैसी-हवा में उड़ते हुए सत्तु के कणों में होती है। अतः शरीरों के नाम के आधार पर बन्धननामकर्म के इस अपेक्षा से ५ भेद होते हैं। (१) औदारिक-शरीर-बन्धन-नाम, (२) वैक्रियशरीर-बन्धननाम, (३) आहारकशरीर-बन्धन-नाम, (४) तैजसशरीरबन्धननाम, (५) कार्मणशरीरबन्धन-नाम। जिस कर्म . के उदय से पूर्वगृहीत एवं गृह्यमाण औदारिक पुद्गलों का परस्पर एवं तैजस-कार्मणशरीर के पुद्गलों के साथ सम्बन्ध होता है, वह औदारिकशरीर-बन्धन-नामकर्म है। जिस कर्म के उदय से पूर्व-गृहीत वैक्रिय शरीर पुद्गलों के साथ गृह्यमाण वैक्रियशरीरपुद्गलों का आपस में सम्बन्ध तथा तैजस, कार्मण शरीर के पुद्गलों के साथ सम्बन्ध होता है, वह वैक्रियशरीरबन्धन नामकर्म कहलाता है। जिस कर्म के उदय से पूर्वगृहीत एवं गृह्यमाण आहारक पुद्गलों का परस्पर व तैजस-कार्मण शरीर के पुद्गलों के साथ सम्बन्ध होता है, वह आहारकशरीर-बन्धन नामकर्म कहलाता है। जिस कर्म के उदय से पूर्वगृहीत एवं वर्तमान में ग्रहण किये जाने वाले तैजस पुद्गलों का परस्पर तथा कार्मण शरीर-पुद्गलों के साथ सम्बन्ध होता है, वह तैजस शरीर नामकर्म है। जिस कर्म के उदय से पूर्वगृहीत कार्मण शरीर के पुद्गलों के साथ गृह्यमाण कार्मणशरीर-पुद्गलों का आपस में बन्ध होता है, उसे कार्मणशरीरबन्धननामकर्म कहते हैं। पूर्व में बन्धन नामकर्म के पूर्वोक्त पांच भेद. बताए गए हैं, किन्तु अपेक्षा दृष्टि से उसके पन्द्रह भेद भी होते हैं। जैसे-मूल शरीर का मूल शरीर के साथ संयोग करने से पांच, औदारिक, वैक्रिय, और आहारक के साथ क्रमशः एक बार तैजस शरीर को एक बार कार्मणशरीर को संयोग करने से क्रमशः ४+३=७ भेद बनते हैं। औदारिक आदि तीनों आद्य शरीरों के साथ युगपत् तैजस-कार्मणशरीर का संयोग करने से तीन भेद बनते हैं। जिनके नाम क्रमशः इस प्रकार हैं. I. द्विकसंयोगी-५ (१) औदारिक-औदारिक, (२) वैक्रिय-वैक्रिय, (३) आहारक-आहारक, (४) तैजस-तैजस और (५) कार्मण-कार्मण। _II. द्विकसंयोगी-३ (१) औदारिक-तैजस, (२) वैक्रिय-तैजस, (३) आहारकतैजस। .. - III. द्विकसंयोगी-४ (१) औदारिक-कार्मण, (२) वैक्रिय-कार्मण, (३) आहारककार्मण, और (४) तैजस-कार्मण।
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