________________
११० कर्म-विज्ञान : भाग ४ : कर्मबन्ध की सार्वभौम व्याख्या (७)
(२) विशुद्ध भाव (निर्मल परिणाम) वाले महाप्रभावशाली शिवभूति मुनिराज 'माष-तुष' (उड़द की दाल और छिलका) इस पद को घोटते (रटते हुए) शुद्ध भाद (भेदविज्ञान रूप परिणाम) उड़द और छिलका पृथक्-पृथक् है, वैसे मेरा आत्मा में कर्मरूपी छिलके या कर्मोपाधिक शरीर से भिन्न है, के कारण केवलज्ञान प्राप्त का लिया था। अज्ञान का अर्थ और रहस्य : मोहविशिष्ट मिथ्यात्वयुक्त ज्ञान
'आप्तमीमांसा' में इसी तथ्य का समर्थन करते हुए कहा गया है-“मोह-विशिष्ट अर्थात् मिथ्यात्व-युक्त व्यक्ति का ज्ञान अज्ञान है, और उसके बन्ध होता है, किन्तु मोहरहित अथवा मिथ्यात्वरहित व्यक्ति के अल्पज्ञान (थोड़े सम्यग्ज्ञान) से 'बन्ध नहीं होता। (निष्कर्ष यह है कि) मोहयुक्त व्यक्ति (मिथ्यात्वी) के ज्ञान से बन्ध होता है, इसके विपरीत मोहरहित व्यक्ति को अल्पज्ञान से मोक्ष हो जाता है।"२ । बन्ध का अन्वय-व्यतिरेक : सम्यग्ज्ञान की न्यूनाधिकता के साथ नहीं
यहाँ विचारणीय यह है कि बन्ध का अन्वय-व्यतिरेक (सम्यक्) ज्ञान की न्यूनाधिकता के साथ नहीं है। अतः (सम्यक्) ज्ञान को (मिथ्यात्व रहित ज्ञान को) बन्ध का कारण नहीं माना जा सकता। अतः मोह (मिथ्यात्व) युक्त ज्ञान अज्ञान है,
और वही बन्ध का कारण है, मोह (मिथ्यात्व) रहित ज्ञान नहीं। फलितार्थ यही है कि बन्ध का कारण मोहयुक्त अज्ञान है, और मुक्ति का कारण है-मोह का अभावयुक्त ज्ञान; इसके साथ ही अन्वय-व्यतिरेक सुघटित होता है।३ मिथ्यात्वमोह-रहित अल्पज्ञान भो अद्भुतशक्तियुक्त
कोई व्यक्ति यदि ज्ञानावरणीय-कर्मोदयवश इतना शास्त्रज्ञ नहीं है, मन्दज्ञानी है, किन्तु विशुद्ध-चारित्री है तो वह मोक्ष का अधिकारी है। सम्यक् चारित्र से समलंकृत मन्दज्ञानी भी केवलज्ञान का अधिकारी हो सकता है बशर्ते कि मोहकर्म का तथा ज्ञान-दर्शनावरणीय कर्म का क्षय हो गया हो। मिथ्यात्व मोह-रहित दशा में यथावश्यक अल्पज्ञान भी अद्भुत-शक्तियुक्त हो जाता है।४
१. अंगाई दस य दुण्णिय, चउद्दस-पुव्वाई सयल-सुयणाणं ।
पढिओ अ भव्वसेणो, ण भाव-समणत्तर्ण पत्तो ॥ 'तुस-मास' घोसंतो, भावविसुद्धो महाणुभावो य ।
णामेण य सिवभूई, केवलणाणी फुड जाओ। २. अज्ञानान्मोहिनो बंधो, न ज्ञानाद् वीत-मोहतः ।
ज्ञान-स्तोकाच्च मोक्षः स्यादमोहान्मोहिनोऽन्यथा ॥ ३. महाबंधो भा. १ की प्रस्तावना पृ. ६९ ४. वही, पृ ६८
-भावपाहुड ५२-५३
-आप्तमीमांसा ९८
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org