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२३८ कर्म-विज्ञान : भाग ४ : कर्मबन्ध की सार्वभौम व्याख्या (७) आयुबन्ध के छह प्रकार ___ आगामी भव में उत्पन्न होने के लिए गति और जाति आदि का बांधना आयु-बन्ध कहलाता है। इसके ६ प्रकार होते हैं-(१) जाति, (२) गति, (३) स्थिति, (४) अवगाहना, (५) प्रदेश और (६) अनुभाग। जाति-एकेन्द्रियादि पाँच जातियाँ हैं। जीव को जिस जाति में उत्पन्न होना होता है, मरने से पूर्व वह उस जाति का बन्ध कर लेता है। गति-मरने से पूर्व वह प्राप्तव्य गति का बन्ध कर लेता है। स्थिति-उक्त भव में ठहरने की जितनी काल-मर्यादा है, मरने से पहले जीव उसे बांध लेता है। अवगाहना-शरीर की ऊँचाई-नीचाई को अवगाहना कहते हैं, मरने से पूर्व जीव इसका भी बन्ध कर लेता है। प्रदेश-जिन-जिन आत्म-प्रदेशों पर जीव को सुख-दुख का भोग (वेदन) करना होता है, उसका बन्ध (प्रदेशबन्ध) भी मृत्यु से पूर्व हो जाता है।
और अनुभाग–अनुभाग का अर्थ है-फलभोग। फल तीव्र, तीव्रतर या तीव्रतम भोगना है, अथवा मन्द, मन्दतर या मन्दतम; यह सब मृत्यु से पूर्व जीव बाँध लेता है।' पुण्य-पाप की दृष्टि से आयुष्य कर्म के दो विभाग कर सकते हैं-शुभायु और अशुभायु। नामकर्म : स्वरूप, स्वभाव, बन्धकारण एवं प्रकार
जिस कर्म के उदय से जीव नारक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव नामों से पुकारा जाता है; अथवा जो कर्म जीव को नरकगति आदि अच्छी-बुरी पर्यायों या अवस्थाओं का अनुभव करने के लिए बाध्य करता है, या उन्मुख करता है, वह नामकर्म है। शरीर और शरीर से सम्बद्ध अंग-प्रत्यंग, डीलडौल, रचना (ढाँचा), इन्द्रियाँ, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, शुभ, अशुभ, यश, नामबरी, अपयश, सुस्वर, दुस्वर, सुभग-दुर्भग आदि शरीर और शरीर से सम्बद्ध वस्तुओं के कण-कण की रचना करने वाला नामकर्म है।२
नामकर्म को चित्रकार की उपमा दी गई है। जैसे चित्रकार अनेक प्रकार के रंगों से विभिन्न प्रकार के अच्छे-बुरे चित्र बना देता है। वैसे ही नामकर्म भी जीव के अच्छे-बुरे विभिन्न प्रकार के रूप बना डालता है।३
-प्रज्ञापना २३/१ टीका -ठाणांग २/४/१०५ टीका
१. ज्ञान का अमृत से, पृ. ३११ २. (क) नामयति-गत्यादिपर्यायानुभवन प्रतिप्रवयणति जीवमिति नाम ।
(ख) विचित्रैः पर्यायर्नमयति-परिणमयति यज्जीवतन्नाम ।
(ग) कर्मप्रकृति से, पृ. ५१ ३. जह चित्तयरो निउणो अणेगरूवाई कुणइ रुवाइ ।
सोहमसोहणाई चोक्खमचोक्खेहिं वण्णेहिं ।। तह नामपि हु कम्म अणेगरूवाइ कुणइ जीवस्स । सोहणमसोहणाई इट्ठाणिट्ठाई जीवस्स ।।
-ठाणांग २/४/१०५ टीका
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