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उत्तर-प्रकृतिबन्ध : प्रकार, स्वरूप और कारण-१ २७५ किसी भी हालत में सहन नहीं कर पाते, उनके पेट में दर्द होने लगता है। फलतः जब तक वे दूसरों को हानि न पहुँचा दें, उनकी बढ़ती हुई प्रगति की बेल को जड़ से काट न दें, उनके प्रगतिमूलक साधनों को समाप्त न कर दें, उनके कार्यों को ठप्प न कर दें, तब तक उन्हें चैन नहीं पड़ता। यह दशा मानवजीवन के प्रायः सभी क्षेत्रों में है। परन्तु यहाँ तो ज्ञान के क्षेत्र की संकीर्णता का प्रसंग है। विद्या-ज्ञान के क्षेत्र में देखा जाता है कि कई व्यक्ति न तो स्वयं अच्छा पढ़-लिख सकते हैं, परन्तु जब कोई दूसरे परिवार, धर्मसम्प्रदाय, वर्ग-जाति का व्यक्ति विद्या के क्षेत्र में उन्नति-प्रगति करना चाहता है, ज्ञान के अनमोल मोती उपलब्ध करने का प्रयास करता है, तो उन्हें वह असह्य हो जाता है, वे ऐसा वातावरण बनाने या उसे बरगलाने का प्रयास करते हैं, जिससे अध्ययनशील या ज्ञान-पिपासु व्यक्ति उस क्षेत्र में सफल न हो सके, वह सर्वथा
अपठित या ज्ञानहीन रह जाए। ___ एक विधवा का इकलौता बालक अपनी बौद्धिक विलक्षणता से एक अध्यापक का कृपापात्र था। अध्यापक भी उसे उदारतापूर्वक पढ़ाता, फीस भी माफ करवा देता था, पाठ्य पुस्तकें भी अपने पास से भी दे रहा था। यहाँ तक कि जिस विषय में वह कमजोर था, उस विषय में एक घंटा अधिक पढ़ा कर उसकी कमी को दूर करता था। इस बालक की सफलता और उन्नति एक पड़ौसी से देखी नहीं गई। उसने उक्त अध्यापक को बरगलाया-“मास्टरजी ! आप जिस बालक को फ्री पढ़ाते हैं, प्रत्येक दृष्टि से उसकी सहायता करते हैं, उसकी मां आपको गाली देती है कि मास्टरजी 'पढ़ाई के बहाने मेरे बच्चे से सारे दिन घर का काम करवाते हैं, उसे नौकर बना रखा है।' प्रतिदिन गालियाँ सुनते-सुनते मैं तो तंग आ गया। पर आप इतने भले हैं कि व्यर्थ में ये गालियाँ सहते हैं।" पड़ौसी के बहकाने से अध्यापकजी उसकी बातों में आ गए। दूसरे दिन से ही उसे पढ़ाना और सहायता देना बंद कर दिया। फलतः विधवा-पुत्र के ज्ञानवृद्धि के क्षेत्र में अंधेरा छा गया। जीवन की उन्नति के सब द्वार बन्द हो गए।
कई मकान-मालिक लोग अपने किरायेदार के अध्ययनशील बालकों की विद्यासाधना देखकर उनके अध्ययन में यह सोचकर विन डालने का प्रयास करते हैं, कि अगर किरायेदार के लड़के पढ़-लिख गए तो अच्छे-अच्छे कार्यों में लग जाएँगे, इनका पिता मेरे से आर्थिक दृष्टि से आगे निकल जाएगा। कितने घृणास्पद संकीर्ण विचार हैं ये ! उसने रात्रि को उन बालकों को पढ़ने में सहायक बिजली बंद कर दी। बिजली बंद हो जाने से वे बालक ज्ञानसाधना में तीव्रता से आगे नहीं बढ़ सके। ____ इस प्रकार जो व्यक्ति किसी की ज्ञानसाधना में बाधक बनते हैं, रोड़े अटकाते हैं, ज्ञानप्राप्ति के साधनों को समाप्त करने या बिगाड़ने का प्रयास करते हैं, वे ज्ञानावरणीय कर्म का बन्ध करते हैं।
१. ज्ञान का अमृत, पृ. २४१ से २४८
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