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प्रदेशबन्ध : स्वरूप, कार्य और कारण १९१
प्रदेशबन्ध का परिष्कृत लक्षण
“यही कारण है, प्रदेशबन्ध का परिष्कृत लक्षण तत्त्वार्थसूत्र में इस प्रकार बताया गया है-नाम-प्रत्यय, अर्थात् - कर्म-प्रकृतियों के कारणभूत एवं प्रतिसमय सभी ओर से योग-विशेष (योगों की क्रिया - विशेष) के द्वारा अनन्तानन्त प्रदेश वाले (कर्म) पुद्गल स्कन्ध आत्मा के सभी प्रदेशों में, सूक्ष्मरूप से एक क्षेत्रावगाहित होकर दृढ़तापूर्वक बंध को प्राप्त होते हैं, यही प्रदेशबन्ध है । '
प्रदेशबन्ध के परिष्कृत लक्षण में कर्मस्कन्धों का आत्मप्रदेश से बन्ध कैसा ? प्रदेशबन्ध का जो परिष्कृत लक्षण बताया गया है, उससे फलित होता है कि प्रदेशबन्ध एक ऐसा सम्बन्ध है, जिसके दो मुख्य आधार हैं - ( १ ) आत्मा और (2) कर्मस्कन्ध। परन्तु आत्मप्रदेशों के साथ कर्मस्कन्ध का बन्ध रासायनिक नहीं है। आत्मा और कर्मशरीर का एकक्षेत्रावगाह के सिवाय अन्य कोई रासायनिक मिश्रण हो भी नहीं सकता। रासायनिक मिश्रण यदि होता है तो प्राचीन कर्मपुद्गलों से ही नवीन कर्मपुद्गलों का होता है; आत्मप्रदेशों से नहीं। इसीलिए तत्त्वार्थ सूत्र के पूर्वोक्त सूत्र में कहा गया है- योग के कारण समस्त आत्मप्रदेशों पर सभी ओर से सूक्ष्म कर्मपुद्गल आकर एकक्षेत्रावगाही हो जाते हैं, अर्थात्-जिस क्षेत्र में आत्मप्रदेश हैं, उसी क्षेत्र में वे कर्मपुद्गल ठहर जाते हैं। इसी का नाम प्रदेशबन्ध है, द्रव्यबन्ध भी यही है ।
वस्तुस्थिति यह है कि नूतन कर्मपुद्गलों का पुराने बँधे हुए कर्मशरीर के साथ रासायनिक मिश्रण हो जाता है और वह नूतन कर्म उन पुराने कर्म-पुद्गलों के साथ बँधकर उसी स्कन्ध में शामिल हो जाते हैं। पुराने कर्म-शरीर से प्रतिक्षण अमुक कर्मपरमाणु झड़ जाते हैं और उनमें कुछ दूसरे नये कर्मपरमाणु शामिल होते हैं। परन्तु आत्मप्रदेशों के साथ उनका रासायनिक बंध हर्गिज नहीं है, वह तो मात्र संयोग है । २
नई कर्मवर्गणाएँ पुराने कर्मों से क्यों और कैसे चिपकती हैं ?
इसलिए कार्मण-वर्गणाएँ ग्रहण करने के साथ ही आत्मप्रदेशों के साथ मिल जाती हैं, और पूर्वबद्ध कर्मों के साथ चिपक जाती हैं। इस सम्बन्ध में प्रश्न उठाया जा सकता है कि नयी कर्म-वर्गणाएँ पुराने कर्मों से किए तरह चिपक जाती हैं ? इसका समाधान यह है कि कर्म-परमाणुओं में चिकनाहट होती है, इसी कारण वे पुराने कर्मों से चिपक जाते हैं। इस प्रक्रिया में कार्मण वर्गणाओं के परमाणुओं का समूह आत्मप्रदेशों के साथ मिश्रित संयुक्त या बद्ध हो जाता है, किन्तु वह बंध रासायनिक १. नाम- प्रत्ययाः सर्वतो योग - विशेषात् सूक्ष्मैकक्षेत्रावगाह - स्थिताः सर्वात्मप्रदेशेष्वनन्तानन्त- प्रदेशाः - तत्त्वार्थसूत्र ८/२५
२. (क) तत्त्वार्थसूत्र ८ / २५ पर पं. सुखलालजी कृत विवेचन, पृ. २०३ (ख) जैनदर्शन ( डॉ. महेन्द्रकुमारजी न्यायाचार्य), पृ. २२५
(ग) आत्मतत्वविचार, पृ. २२५
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