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मूल प्रकृतिबन्ध : स्वभाव, स्वरूप और कारण २३१ सकता। मनुष्य हो तो मनुष्यरूप में, पशु-पक्षी या मत्स्य आदि हो तो उस रूप में अपना आयुष्य काल पूर्ण करता है। वह उसे करना ही पड़ता है। वहाँ तक वह अन्यत्र जा नहीं सकता। आयुष्य में वृद्धि करना या कमी करना उसके हाथ में नहीं होता। जिस प्रकार बेड़ी कैदी की स्वतंत्रता में बाधक है, उसी प्रकार जो कर्म-परमाणु आत्मा को विभिन्न शरीरों में नियत अवधि तक कैद रखते हैं, उन्हें आयुष्कर्म कहते हैं। आयुष्कर्म का स्वभाव आत्मा के अविनाशी गुण या अक्षय स्थिति को रोकने का है।' ___ आयुष्कर्म का उदय चल रहा हो, तब तक आत्मा अन्य भव में या मोक्ष तक में जा नहीं सकती। आयुष्कर्म के उदय से जन्म, मृत्यु तथा बाल्य, युवकत्व, वृद्धत्व आदि अवस्थाएँ या विकृतियाँ पैदा होती हैं। जीव को अमुक स्थानों में रहने की इच्छा न होने पर भी आयुष्य कर्म के बल से स्थिति (आयु) पूरी न हो, तब तक अनिच्छा से भी रहना पड़ता है। जैसे-नरक का जीव पल-पल में मौत की इच्छा करता है, परन्तु आयुष्यकर्म पूरा न हो, वहाँ तक वह मर नहीं सकता। इसी प्रकार देवलोक में या मनुष्यलोक में अपार सुख-समृद्धि के स्थानों को छोड़ने की इच्छा न होते हुए भी आयुष्यकर्म पूर्ण होने पर बरबस छोड़ना पड़ता है। कई लोग अपार वेदना से छुटकारा पाने के लिए शीघ्र मृत्यु चाहते हैं, परन्तु आयुष्य पूर्ण न हो, तब तक मौत आ नहीं सकती।२ । नागश्री ब्राह्मणी ने महातपस्वी धर्मरुचि अनगार को कड़वे-विषाक्त तम्बे का साग भिक्षा में दिया-अशुभ भाव से। मुनि ने दया की भावना से वह आहार पूरा का पूरा खा लिया। विष का परिणाम जो होना था, वही हुआ। मुनि तो समभाव से वेदना सहकर आयुष्य पूर्ण होते ही तेतीस सागरोपम आयु वाले सर्वार्थसिद्ध नामक देक्लोक में शुभदीर्घायु वाले देव बने, जबकि नागश्री अशुभ परिणामों से मर कर बाईस सागरोपम वाली अशुभ दीर्घायुप्रयुक्त भयंकर दुःखपूर्ण छठी नरक में गई। जहाँ वह क्षण-क्षण में भयंकर वेदना से त्रस्त होकर प्रतिपल मौत चाहती थी, परन्तु पूर्ण आयुष्य भोगे बिना वहाँ उसे मौत नहीं मिल सकी।
आयुष्यकर्म समाप्त होने को आता है, तब दुनिया की कोई भी शक्ति उसे रोक नहीं सकती। बड़े-बड़े मंत्र-तंत्रवादी भी यहाँ आकर फेल हो जाते हैं। इसका रहस्य नहीं समझ पाते। मनुष्य भोजन कर रहा हो, हाथ में कौर हो, आयु की समाप्ति हो गई हो
तो ग्रास हाथ में ही रह जाता है। जीवन-लीला समाप्त हो जाती है। ___फगवाड़े की एक घटना है। पति घर में आते ही पली से पानी लाने को कहता है। पत्नी पानी का गिलास लेकर आती है किन्तु पानी पीने वाला पानी आने से पहले ही चल देता है। नवांशहर की घटना है। पति ने पत्नी से चाय तैयार करके लाने को
१. जैनदृष्टिए कर्म से, पृ. ६७ १२. कर्मग्रन्थ भाग १ (मरुधर केसरी)
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