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१३८ कर्म-विज्ञान : भाग ४ : कर्मबन्ध की सार्वभौम व्याख्या (७) हो रही हो, उस अग्नि में ये कर्म-पुद्गल योग (आसव) के द्वारा ईधनरूप में लाकर गिराये जाएँ तो ये उस अग्नि को अधिकाधिक प्रज्वलित कर देंगे। इस दृष्टि से जो अग्नि जल रही है, वह भी कर्म है और अग्नि को अधिकाधिक प्रज्वलित करने वाले भी कर्म हैं। अर्थात्-जो कर्मपुद्गलों को लाने वाला है, वह योग है, और उन्हें अधिकाधिक उत्तेजित करते हैं, वे कषाय हैं। ये दोनों ही मिलकर कर्म को आत्मा से चिपका कर रखते हैं, बांध देते हैं। भावबन्ध न हो तो द्रव्यबन्ध कुछ नहीं कर सकता
निष्कर्ष यह है कि प्रवृत्ति के साथ जो पुद्गल खिंचा हुआ आता है, और चिपकता है, वह द्रव्य (कर्म) बन्ध है, तथा रागादि या कषाय का परिणाम (अध्यवसाय) भाव (कम) बन्ध है। द्रव्यबन्ध वास्तविक बन्ध नहीं है। यदि भावबन्ध न हो तो द्रव्यबन्ध कुछ नहीं कर सकता। दूसरे शब्दों में यदि कषाय या रागद्वेष रूप परिणाम न हों तो योग द्वारा लाए हुए कर्मपुद्गल आत्मप्रदेश को स्पर्श करेंगे, किन्तु ठहरेंगे नहीं, चले जाएँगे-स्वतः झड़ जाएँगे। अतः योग का काम है-कर्मपरमाणुओं को आत्मा तक लाने का, किन्तु उसके साथ बन्ध कराने का काम कषाय या राग-द्वेष का है। दोनों मिलकर ही आत्मप्रदेशों के साथ कर्म को बाँधते हैं, अकेला योग नहीं। जिनके रागद्वेष या कषाय नष्ट हो गए हैं, वे योगों द्वारा प्रवृत्ति करते हैं, कर्मपुद्गल भी आते हैं, किन्तु रुकते और बंधते नहीं, वे आते हैं, और एक-दो समय रहकर चले जाते हैं। क्योंकि उनके स्थितिरूप से टिकने और अनुभागरूप से बंधने का कोई कारण शेष नहीं रहता। कर्मों के आने-जाने का यह क्रम तब तक चलता रहता है, जब तक वे आठ ही कर्मों से पूर्णतया मुक्त नहीं हो जाते। आत्मारूपी दीवार पर कर्मरज को योगरूप वायु एवं कषायरूप. गोंद चिपकाते हैं
आशय यह है कि अकषाय आत्मा के कषाय न होने से केवल योग कर्मबन्धकारक कदापि नहीं होते, किन्तु सकषाय आत्मा के लिए योग भी कर्मबन्ध के कारण हैं, और कषाय तो उस कर्मबन्ध को और अधिक सुदृढ़ और चिरस्थायी कर देते हैं। इसीलिए योग और कषाय दोनों को कर्मबन्ध के मुख्य कारण बताए हैं। कर्मविज्ञान मर्मज्ञों ने योग को वायु की, कषाय को गोंद की, आत्मा को एक दीवार की और कर्मपरमाणुओं को रज (धूल) की उपमा देकर इस विषय को स्पष्ट रूप से समझाय है। यदि दीवार पर गोंद आदि चिकनी वस्तुएँ लगी हों तो वायु के साथ उड़ने वाली धूल दीवार पर चिपक जाती है। यदि दीवार साफ सूखी और पॉलिस की हुई हो तो वायु के साथ उड़ कर आने वाली धूल दीवार पर चिपकती नहीं, उससे स्पर्श करके तुरंत झड़ जाती है। इसी प्रकार योग रूप वायु के द्वारा लाई हुई कर्मरूपी रज कषायरूप गोंद से युक्त आत्म-प्रदेशरूप दीवार पर चिपक जाती है। यदि वायु तेज १. जैनयोग से भावग्रहण, पृ. ३९
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