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कर्मबन्ध के अंगभूत चार रूप १७७
बन्ध के ये चारों रूप स्वतः कैसे निष्पन्न हो जाते हैं ? प्रश्न होता है, कर्मबन्ध की पूर्वोक्त चारों अवस्थाएँ या व्यवस्थाएँ जीव या आत्मा के द्वारा निष्पन्न न होकर स्वाभाविक रूप से अपने आप कैसे निष्पन्न हो जाती हैं। इसके लिए हम एक अनुभूत उदाहरण ले लें-हम भोजन करते हैं, उस समय भोज्य एवं पेय पदार्थों को गले से नीचे उतार देते हैं। हमें विश्वास होता है कि पेट में डाला हुआ भोज्य एवं पेय पदार्थ अपने आप हजम होगा। अतः भोजन गले से उतारने के बाद की सारी क्रियाएँ स्वतः संचालित होती हैं। हमारे द्वारा खाना खाने के बाद, पाचक रस उसके साथ स्वतः मिल जाता है। वह फिर शरीर के सभी अवयवों में फैलता है। उसके रस, रक्त, मांस, मज्जा आदि बनते हैं। आहार में जो सारभूत भाग था, वह विभिन्न अवयवों में स्वतः वितरित हो गया। जो असार भाग था, वह बड़ी आंत में गया। वहाँ से मल, मूत्र, प्रस्वेद आदि के रूप में उत्सर्ग-क्रिया सम्पन्न हुई। ये समस्त क्रियाएँ स्वतः होती चली गईं। हमने न तो उसके लिए कोई प्रयल किया और न ही खाये हुए भोजन पर ध्यान दिया कि अब हमें भोजन को पचाना है, अब भोजन का रस बनाना, रक्त बनाना है या उससे ऊर्जा-शक्ति प्राप्त करनी है, या बल-बुद्धि प्राप्त करनी है। जहाँ जो कार्य होना होता है, वह स्वतः होता चला जाता है। यही बात हमारे द्वारा गृहीत कर्म-पुद्गल-परमाणुओं के विषय में समझ लेनी चाहिए।
जिस प्रकार खाद्य-पेय पदार्थों को ग्रहण करना आहार है, उसी प्रकार हमारी कायिक-वाचिक-मानसिक योग-चंचलता के द्वारा जो भी कर्म-पुद्गल हम खींचते हैं, ग्रहण करते हैं, वह भी आहार (आहरण) है। वे कर्म-पुद्गल आकर हमारे आत्म-प्रदेशों के साथ दूध-पानी की तरह घुल-मिल जाते हैं, चिपक जाते हैं। उनके चिपकने के बाद कर्मों के अपने-अपने स्वभावानुसार जो विभाजन होता है, उनके स्वभाव का पृथक-पृथक निर्माण होता है, तथा वह कर्म-पुद्गल परिमाण में कितना है? इसका निर्णय भी हो जाता है। वह कितने काल तक टिका रहेगा, अपने स्वभाव से च्युत न होगा, एवं कितने तीव्र या मन्द से युक्त फल प्रदान करने की शक्ति वाला है? सब प्रक्रियाएँ आत्मा में स्वतः निष्पन्न होती हैं।
खाये हुए पदार्थ के पचाने, रस बनाने और कमी की
पूर्ति करने की प्रक्रिया स्वतः जिस प्रकार शरीर में खाये गए अनेक प्रकार के पदार्थों का निर्माण और पूर्ति स्वतः होती रहती है। शरीर को चिकनाई की जरूरत है, वह पूरी हो जाती है-स्निग्ध पदार्थों से। शरीर को प्रोटीन की आवश्यकता है। भोज्य पदार्थों में जो प्रोटीन का भाग होता है, वह प्रोटीन की पूर्ति कर देता है। इसी तरह जहाँ-जहाँ जिस विटामिन की आवश्यकता होती है, वह भोजन के माध्यम से स्वतः पहुँच जाता है।
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