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= कर्मबन्ध की मुख्य चार दशाएँ
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कर्मा
कर्मबन्ध की डिग्री के चार मुख्य मापक आधुनिक वैज्ञानिकों ने ताप अथवा ज्वर नापने का यंत्र आविष्कृत किया है; हव को मापने के लिए बेरोमीटर का आविष्कार किया है, वर्षा और ठंड को नापने के यंत्र भी आविष्कृत हो चुके हैं। इसी प्रकार दूध में पानी का अंश कितना है, कितन नहीं ? इसे नापने या परीक्षण करने का यंत्र भी व्यावसायिक जगत् में आ गया है। इन यंत्रों से ताप, गर्मी, ठंड, हवा, वर्षा, दूध आदि की डिग्री का पता लग जाता है। जैसे इन यंत्रों से सर्दी, गर्मी, वर्षा आदि की डिग्री की मात्रा का शीघ्र पता लग जाता है, वैसे ही कर्मविज्ञान-मर्मज्ञों ने कर्मबन्ध को नापने और उसकी मात्रा अथवा तीव्रता-मन्द्रता का पता लगाने के लिए चार मुख्य मापक बताए हैं। ये चारों मापक कर्मबन्ध की डिग्री बता देते हैं। ये चारों मापक कर्मविज्ञान के पारिभाषिक शब्द हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं-(१) स्पृष्ट, (२) बद्ध, (३) निधत्त और (४) निकाचित। ये चारों मापक कर्मबन्ध की चार मुख्य अवस्थाओं अथवा दशाओं को बताने के लिए कर्मवैज्ञानिकों द्वारा आविष्कृत और परिभाषित किये गये हैं।'
___ कर्मबन्ध की चार अवस्थाओं का चार व्यक्तियों की अपेक्षा से विचार इन्हीं चारों मुख्य मापकों को हम सरल शब्दों में यों कह सकते हैं-(१) ढीला बन्ध, (२) इससे जरा मजबूत बन्ध, (३) इससे भी अधिक मजबूत बन्ध, (४) इन ‘सबसे भी अत्यन्त पक्का और सुदृढ़ बन्ध, जो कभी खुल न सके।२।। ___ इस प्रकार कर्मबन्ध की चार अवस्थाएँ हैं। मान लीजिए, चार व्यक्ति विभिन्न प्रकृति के हैं। चारों एक साथ एक ही कर्म का बन्ध करते हैं। परन्तु चारों की काषायिक तथा राग-द्वेषयुक्त परिणाम-धारा में बहु अन्तर है। पहले की आत्मा पर राग-द्वेष की चिकनाई या कषाय की स्निग्धता ब ही कम लगी है, उसने कर्मबन्ध १. देखें, भगवतीसूत्र खण्ड १, श. १, उ. १, सू ६ का विवेचन, पृ. २० (आगम
- प्रकाशन समिति, ब्यावर) । २. कर्म-फिलोसोफी (गुजराती) (विजयलक्ष्मण सूरीजी) , पृ. १९
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