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= कर्मबन्ध के विभिन्न प्रकार और स्वरूप =
व्यक्ति किसी भी चीज को बांधने में मन और काया से बांधता है लोकव्यवहार में यह देखा जाता है कि कोई भी व्यक्ति किसी चीज को बांधना चाहता है, तो पहले मन में उसका प्लान बनाता है, विचार करता है कि इसे अमुकअमुक वस्तुओं से बांधना है, तदनन्तर वह बांधने की क्रिया करता है, कल्पना कीजिए-किसी व्यक्ति को दवा की गोली बांधनी है, तो पहले वह व्यक्ति उस दवा की गोली बनाने में कौन-कौन-चीजें पड़ती हैं? फिर गोलियाँ कैसे बांधी जाती हैं? इसको वह अपने मस्तिष्क में बिठाता है, फिर गोलियाँ बांधता है। एक दृष्टि से वह पहले अपने मस्तिष्क में उस दवा की गोलियाँ भावों से बांध लेता है, तत्पश्चात् उक्त गोली को बांधने का सामान जुटा कर विधि-पूर्वक गोलियाँ बांधता है। पहली मानसिक प्रक्रिया को हम भाव से गोली बाँधना कहते हैं और दूसरी कायिक प्रक्रिया को द्रव्य से गोली बांधना कहते हैं। ठीक यही बात कर्मबन्ध के विषय में समझनी चाहिए। कर्मबन्ध करने वाला पहले राग द्वेष, कषाय आदि. भावों से कर्म बांध लेता है, तत्पश्चात् वह द्रव्य से मन-वचन-काया से भी कर्मपुद्गलों को बांधता है। सांसारिक जीव तो प्रायः मन-वचन-काया से द्रव्यकर्म के साथ-साथ ही भावकर्म और भावकर्म के साथ ही द्रव्यकर्म का बंध करता है। कर्मबन्ध का यह द्विविध चक्र तब तक चलता रहता है, जब तक वीतरागता प्राप्त नहीं हो जाती।
सामान्यतया कर्मबन्ध तभी होता है, जब जीव (आत्मा) स्व-भाव को छोड़ कर पर-भाव से संयोग करता है, अथवा राग-द्वेष, कषाय आदि विभावों को अपनाता है।
हाथ से उठाने की तरह भाव से उठाने से भी बन्ध होता है एक व्यक्ति किसी दूसरे की कीमती चीज को अपने कब्जे में करने के लिये उससे बिना पूछे ही उठा लेता है, क्या वह पकड़ा नहीं जाएगा या बन्धन में नहीं डाला जाएगा? वह पकड़े जाने पर सजा का पात्र होता है, जेल में बंद कर दिया जाता है। यह एक प्रकार का बन्धन हुआ। परन्तु कोई अपनी चीज मान कर भी (जो वास्तव में
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