________________
१४० कर्म-विज्ञान : भाग ४ : कर्मबन्ध की सार्वभौम व्याख्या (७)
बन्ध में योग और कषाय की प्रधानता है। प्रकृति आदि चारों प्रकार के बंध के लिए इन दो का सद्भाव अनिवार्य है।
चारों बन्ध-अवस्थाओं के दो घटक
सारांश यह है कि प्रकृतिबन्ध आदि चारों बंध की अवस्थाओं के घटक सिर्फ दो हैं-एक है चंचलता यानी प्रवृत्ति या योग और दूसरा है- कषाय या रागद्वेष-मोह। . चंचलता के द्वारा कर्मपरमाणुओं का आकर्षण होता है और कषाय के द्वारा उन कर्मपरमाणुओं को टिकाया जाता है। दो बातें हैं - जिनसे बन्ध सर्वांगपूर्ण होता हैकर्मपुद्गलों को आकर्षित करना और उन्हें टिका कर रखना।
कर्मों का आकर्षण होता है - मन-वचन-काया की चपलता के द्वारा, जबकि उन्हें बांध कर रखा जाता है कषाय या रागद्वेष द्वारा। अर्थात् - कर्म-परमाणुओं को आकृष्ट करना मन-वचन-काया की चपलता का कार्य है और उन कर्म-परमाणुओं को चिपकाये रखना - बांधे रखना कषाय का कार्य है।
कर्म का सर्वांगीण बंध :
योगों की चंचलता और कषाय की तीव्रता - मन्दता पर निर्भर
जैन-कर्म-विज्ञानशास्त्र को आद्योपान्त टटोल कर देखें तो यह तथ्य अतीव स्पष्ट हो जाता है कि कर्म-परमाणु आकर्षित किये जाते हैं योगों की चंचलता के द्वारा और कषाय के द्वारा वे टिके रहते हैं और समय पर अपना फल प्रदान करते हैं। कषाय जितना अधिक तीव्र होगा, उतने ही दीर्घकाल तक कर्म-परमाणु आत्मा से चिपके रहेंगे और समय आने पर फल भी देंगे। आशय यह है कि कर्म का आकर्षण केवल योगों की चपलता के आधार पर तीव्र या मंद वेग से होता है; किन्तु कर्मों के टिके रहने की कालावधि (स्थिति) तथा फलदान - शक्ति, ये दोनों बातें कषाय की तीव्रता - मन्दता पर निर्भर हैं। कषाय के आधार पर दीर्घकालिक या अल्पकालिक स्थिति निर्धारित होती है । तथैव फल की तीव्रता या मन्दता भी तीव्र-मन्द कषाय-रस के अनुपात में होती है। कर्म की स्थिति को बढ़ाना - घटाना भी कषाय पर ही निर्भर है, तथा कर्मफल प्रदान करने की शक्ति में भी तीव्रता - मन्दता लाना कषाय पर ही आधारित है।
कर्मों का आकर्षण और श्लेष : योग एवं कषाय आनवों द्वारा
प्रश्न होता है - कर्म-परमाणुओं के आकर्षण और तत्पश्चात् उनका आत्मप्रदेशों से संश्लेष के पीछे हेतु क्या है ? ये दोनों प्रकार की प्रवृत्तियाँ मुख्यतया दो आनवद्वारों के द्वारा होती हैं- एक को जैनकर्मविज्ञान की पारिभाषिक शब्दावली में योग-आनव कहते हैं, जबकि दूसरे को कहते हैं - कषाय- आम्रव। योग- आम्रव और कषाय- आस्रव - ये दोनों मिलकर कर्मों का आकर्षण और कर्मों का संश्लेष करके आत्मा के साथ चारों बंधांगों
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org