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१०८ कर्म-विज्ञान : भाग ४ : कर्मबन्ध की सार्वभौम व्याख्या (७) मिथ्याज्ञान को बन्ध का कारण बताते हुए कहा है-आत्म-साक्षात्कार होना तत्त्वज्ञान है। तत्त्वज्ञान से निःश्रेयस (मोक्ष) होता है। क्योंकि यही मिथ्याज्ञान का उल्मूलन करने में सक्षम होता है। वेदान्त दर्शन अविद्या या माया को कर्मबन्ध का कारण मानता है। न्यायदर्शन 'मिथ्याज्ञान' को बन्ध का आद्य कारण मानता है। जैसे जैनदर्शन में संसार
(भव) और बन्ध का कारण आस्रव को और आसव का आद्य कारण मिथ्यात्व को • माना गया है, वैसे ही बौद्ध दर्शन में भी आसव (आमव) को भव का हेतु माना गया है, और आस्रव का कारण अविद्या (मिथ्यात्व) को मानकर बताया गया है कि आसव से अविद्या और अविद्या से आनव की परम्परा परस्पर सापेक्षरूप में चलती रहती है। आसव (आसव) की व्याख्या वहाँ की गई है-"जो आसव (मदिरा) के समान ज्ञान का विपर्यय करे अथवा जिससे संसार रूपी दुःख का प्रसव होता हो, वह आप्नव है।" समयसार में अज्ञान को बन्ध का प्रमुख व प्रबल कारण कहा है
- आचार्य कुन्दकुन्द ने 'समयसार' में वैदिक दर्शनों की तरह 'अज्ञान' को ही बन्ध का प्रमुख एवं प्रबल कारण माना है। वहाँ स्पष्ट कहा गया है कि "ज्ञान ही मोक्ष का हेतु है और अज्ञान ही बन्ध का हेतु है।" "इस जगत् में प्रकृतियों के साथ यह (प्रगट) बन्ध होता है, वह वास्तव में अज्ञान की ही गहन महिमा स्फुरित होती है।'' अज्ञान बन्ध का कारण कब है, कब नहीं? __ इस सम्बन्ध में 'आप्तमीमांसा' में एक तर्क उठाते हुए कहा गया है-अज्ञान के कारण नियम से बन्ध होता है, ऐसा सिद्धान्त स्वीकार करने पर कोई भी व्यक्ति केवलज्ञानी नहीं हो सकेगा। क्योंकि ज्ञेय अनन्त हैं, अनन्त ही ज्ञेयों का बोध नहीं होगा तो जिन ज्ञेयों का ज्ञान नहीं हो सकेगा, वे बन्ध के हेतु होंगे। ऐसी स्थिति में सर्वज्ञत्व का सद्भाव कैसे होगा? कदाचित् यह कहा जाए कि सम्यक् अल्पज्ञान से मोक्ष प्राप्त हो जाएगा; तो अवशिष्टं विशाल अज्ञान के कारण उधर बन्ध भी होता जाएगा। इस प्रकार पूर्णज्ञान की प्राप्ति के अभाव में, किसी को मुक्ति प्राप्त नहीं हो सकेगी।५ १. तत्वज्ञानात्रिःश्रेयसम् । तत्वज्ञानमात्मसाक्षात्कार इह विवक्षितः । तस्यैव सर्वांगेग मिथ्याज्ञानोन्मूलन-क्षमत्वात् ।
___-वैशेषिकसूत्र, प्रशस्तपादभाष्य पृ. ५३८ २. दुःख-जन्म-प्रवृत्ति-दोष-मिथ्याज्ञानानामुत्तरोत्तरापाये तदनन्तरापायादपकर्म ।" -न्यायसूत्र १/१? ३. (क) देखें-संयुत्तनिकाय ३६/८, ४३/७/३, ४५/५/१०, २१/३/९
(ख) देखें-बौद्धधर्म-दर्शन पृ. २४५
(ग) जैन, बौद्ध, गीता के आचार दर्शन का तुलनात्मक अध्ययन से भाव ग्रहण पृ. ३६२ ४. (क) ज्ञानाज्ञाने मोक्ष-बन्ध-हेतू नियमयति । -समयसार गा. १५३ टीका। (ख) तथाऽप्यस्यासौ स्यादिह किल बन्धः प्रकतिभिः । स खल्वज्ञानस्य स्फुरति महिमा कोऽपि गहनः ॥
-समयसार ३९५/क.१९५ - ५. अज्ञानाच्चेद् ध्रुवो बन्धो, ज्ञेयानन्त्यान्न केवली । ज्ञानस्तोकाद विमोक्षश्चेदज्ञानाद् बहुतोऽन्यथा ॥
-आप्तमीमांसा ९६
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