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= कर्मबन्ध का मूल स्रोत : अध्यवसाय ==
गंगानदी की विविध धाराओं के स्रोत हिमालयवत् कर्मबन्ध धाराओं का स्रोत अध्यवसाय ___ गंगा नदी मैदानी इलाकों में बहुत तेजी से बहती है। उसका पाट भी वहाँ बहुत चौड़ा होता है। आगे चलकर उस गंगानदी से ही अनेक छोटी-छोटी नदियाँ निकलती हैं। उनसे पेयजल की प्राप्ति, खेतों की सिंचाई, शरीरशुद्धि इत्यादि लाभों के अतिरिक्त विद्युत उत्पादन, जलयानों द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर गमनागमन, माल का आयात-निर्यात सम्बन्धी व्यापार इत्यादि लाभ भी लिया जाता है। कहीं कहीं इस पवित्र नदी में गटरों और गंदे नालों का गंदा जल भी मिल जाता है, जिसे यह अपने में मिलाकर शुद्ध (रिफाइन्ड-Refined) कर देती है। कभी-कभी वर्षा ऋतु में पानी अधिक होने से यह बाढ़ का रूप धारण करके भयंकर विनाशलीला भी उपस्थित कर देती है। फिर भी लोक-जीवन के लिए संजीवनी होने से यह हिन्दू समाज में लोक माता भी मानी जाती है।
कुछ भी हो, गंगा नदी भारतीय जन-जीवन के लिए शुभ भी है, बाढ़ आदि के कारण अशुभ भी है, तथा आध्यात्मिक जीवन-जीवियों के लिए पवित्रता और शुद्धता की प्रेरणादायिनी होने से शुद्ध भी है। दूसरी दृष्टि से देखें तो मछली आदि जल-जन्तुओं को जीवनदायिनी तथा आश्रयदायिनी होने से यह शुभ है, किन्तु बगुले, मगरमच्छ, घड़ियाल आदि जल-जन्तु भक्षक जीवों के लिए मत्स्यादि जलजन्तुओं के भक्षण में निमित्त/आश्रयदात्री होने से वह अशुभ है।
किन्तु भारतीय संस्कृति के मनीषियों ने इस नदी को 'सुरसरिता' मान कर इसके स्रोत को ढूंढने का प्रयत्न किया। उन्होंने अन्वेषण के पश्चात् बताया कि गंगा नदी का मूल स्रोत हिमालय पर्वत है। वहाँ से यह बहुत ही पतली धारा के रूप में निकलती है। अनेक वनौषधियाँ इसमें मिलती हैं। और फिर अनेक धाराओं में फैल जाती है। पूर्वोक्त कथनानुसार गंगा नदी की ये धाराएँ शुभ, अशुभ और शुद्ध तीनों प्रकार की होती हैं।
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