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कर्मबन्ध का मूल स्रोत : अध्यवसाय ७१ बैठा रहता और पानी भरने वाली पनिहारिनों आदि के मुख से अपनी प्रशंसा सुना
करता।
एक बार उसने गुणशीलक चैत्य की ओर जाते बहुत-से लोगों के मुंह से सना कि श्रमण भगवान् महावीर पधारे हैं। यह सुनते ही उसके मन में ऐसा अध्यवसाय जागृत हुआ कि मैंने यह नाम कहीं सुना है। इस पर पुनःपुनः ऊहापोह करते-करते उसे जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ। उसे पूर्वजन्म की स्मृति हो आई। अहो ! मैं पूर्वजन्म में भगवान महावीर का व्रतधारी श्रमणोपासक था, किन्तु पौषध व्रत में मैंने बावड़ी आदि बनवाने का विचार करके व्रत भंग कर दिया, फिर बावड़ी पर मेरी अत्यन्त आसक्ति के कारण व्रतभ्रष्ट अवस्था में मर कर मैं इसी बावड़ी में मेंढक बना हूँ। कोई बात नहीं, अब मैं भगवान महावीर के दर्शन करूंगा और पुनः व्रत धारण करूंगा।"
इस प्रकार भगवान महावीर के दर्शन का और पुनः व्रत ग्रहण करने के शुभ अध्यवसाय के कारण उसके शुभकर्म का बन्ध हुआ। उन शुभ अध्यवसायों के फलस्वरूप उसे शुभसंयोग मिलते गए, मन में अत्यन्त प्रसन्नता और तन में स्फूर्ति आ गई। वह भगवान महावीर के दर्शनार्थ बावड़ी से बाहर निकला और फुदकता-फुदकता उसी राजमार्ग से गुणशीलक उद्यान की ओर भगवान महावीर के पास जा रहा था। संयोगवश राजा श्रेणिक के घोड़े के पैर के नीचे आकर वह कुचला गया। फिर भी उसने घोड़े पर या घुड़सवार पर किसी प्रकार का रोष या द्वेष नहीं किया। वह धीरे से रास्ते के एक ओर पहुँचा। देखा कि अब मैं थोड़ी ही देर का मेहमान हूँ। अतः मुझे अन्तर्यामी भगवान् की साक्षी से अनशन ग्रहण कर लेना चाहिए। मैं कितना अभागा हूँ कि भगवान महावीर के इतने निकट होने पर भी मैं उनके दर्शन नहीं कर सका। अब इस भग्न शरीर से तो मैं उनके पास नहीं पहुँच सकता। फिर भी वे अन्तर्यामी हैं, यहीं से मेरी वन्दना और मेरा समाधिमरण का मनोरथ भी स्वीकार करेंगे। “प्रभो ! भव-भव में आपकी शरण हो। मैं अब यावज्जीवन चौविहार अनशन करता हूँ, और अपने व्रतनियम जैसे नंद मणिहार के भव में थे, उसी प्रकार ग्रहण करता हूँ। सभी जीवों से क्षमायाचना करता हूँ।” यों चिन्तन करते-करते शुभ अध्यवसाय में उसने देह आदि पर से भमत्व-त्याग करके देह-विसर्जन किया। शुभ अध्यवसायों के फलस्वरूप मर कर वह दर्दुरांक नामक महान् ऋद्धिमान् वैमानिक देव हुआ।" यह है-तिर्यञ्चभव में भी शुभ अध्यवसाय के कारण शुभकर्मबन्ध का फल।
अध्यवसायों पर चौकसी रखने से अशुभ से बच सकते हैं अध्यवसाय बदलते रहते हैं। अगर आप अपने अध्यवसायों पर चौकसी रखें तो आप अशुभ अध्यवसायों से बच सकते हैं और शुभ अध्यवसायों में टिके रह सकते १. देखें, ज्ञाताधर्मकथा सूत्र श्रु. १, अ. १३ में नंद मणियार का जीवन वृत्तान्त
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