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तेषां चरित्रं गुणगणमनोहरं सम्यक् दर्शनादिहेतुभूतं वक्ष्ये समासेन सुगुरुक्रमायातं यथाश्रुतं यथामति पूर्वसूरिविनिर्मितचरितानुसारेण च शिष्टाचारसमाचरणार्थ "मंगलादियुक्तं शास्त्रं श्रोता श्रोतुं प्रवर्त्तते" इति न्यायात् फलादिकमभिधाय पुण्यपवित्रं चरित्रं पितामहानां प्रस्तूयते--
॥ तत्रादौ भूमिका ॥
तिहां प्रथमचरित्रके आदिमें स्वाभाविक लोकभाषामें भूमिका
लिखतें हैं॥ इह तिर्यक् लोक इत्यादि ॥
अहो भन्यो यह रत्नप्रभा पृथ्वी एक लाख अने ८० हजारयोजन जाडी और एक राजप्रमाणे लांबी और पोहोली है ।।
१ टिप्पणी-राजकाप्रमाण सौधर्म देवलोकसें नांखाहूवा लोहका गोला ६ महिनोंमें जितने क्षेत्रकू उल्लंघे उतने क्षेत्रकू १ राजकहतें हैं। और इस रत्नप्रभा पृथ्वीके ऊपर १८ सो योजन उंचाइ मे १ राज लांबा और चोडा गोल आकारवाला कांइक विशेषाधिकत्रिगुणी परिधि जिस्की ऐसा यह तिरछा लोक है इस्के विषे गोलाकृतिवाला पृथ्वीमंडल है उस पृथवीमंडलमे सर्व धर्म कर्मोका निदानभूत और महापुरुषोंके चरणकमलोंकरके पवित्र और सर्व १ राजप्रमाणे पृथवीमें सारभूत और वलयाकृति ४५ लाख योजन लांबा पोहोला
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