________________ 20] [ स्थानाङ्गसूत्रम् महावीर अकेले ही सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत (संसार का अन्त करने वाले) परिनिवृत्त (कर्मकृत विकारों से विहीन) एवं सर्व दुःखों से रहित हुए (246) / देव-पद २५०-अणुत्तरोववाइया णं देवा 'एग रयणि' उड्ड उच्चत्तेणं पण्णत्ता। अनुत्तरोपपातिक देवों की ऊंचाई एक हाथ की कही गई है (250) / नक्षत्र-पद २५१--अहाणक्खत्ते एगतारे पण्णत्ते। २५२-चित्ताणक्खत्ते एगतारे पण्णत्ते / २५३-सातिणक्खत्ते एगतारे पण्णत्ते / आर्द्रा नक्षत्र एक तारा वाला है (251) / चित्रा नक्षत्र एक तारा वाला है (252) / स्वाति नक्षत्र एक तारा वाला है (253) / पुद्गल-पद २५४–एगपवेसोगाढा पोग्गला अणंता पण्णत्ता। २५५–एवं एगसमयठितिया पोग्गला अणंता पण्णत्ता / २५६–एगगुणकालगा पोग्गला प्रणता पण्णता जाव' एगगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता। एक प्रदेशावगाढ पुदगल अनन्त हैं (254) / एक समय की स्थिति वाले पूदगल अनन्त हैं (255) / एक गुण काले पुद्गल अनन्त हैं। इसी प्रकार शेष वर्ण, गन्ध, रस और स्पों के एक गुण वाले पुद्गल अनन्त-अनन्त कहे गये हैं। (256) / / प्रथम स्थान समाप्त / / 1. 1 / 72-79. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org