________________ चतुर्थ स्थान–प्रथम उद्देश | [211 2. कोई वस्त्र प्रकृति से शुद्ध, किन्तु अशुद्ध-परिणत होता है। 3. कोई वस्त्र प्रकृति से अशुद्ध, किन्तु शुद्ध-परिणत होता है। 4. कोई वस्त्र प्रकृति से अशुद्ध और अशुद्ध-परिणत होता है / इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे-- 1. कोई पुरुष जाति से शुद्ध और शुद्ध-परिणत होता है / 2. कोई पुरुष जाति से शुद्ध, किन्तु अशुद्ध-परिणत होता है। 3. कोई पुरुष जाति से अशुद्ध, किन्तु शुद्ध-परिणत होता है। 4. कोई पुरुष जाति से भी अशुद्ध और परिणति से भी अशुद्ध होता है (25) / २६-चत्तारि वत्था पणत्ता, तं जहा-सुद्धे गाम एगे सुद्धरूवे, सुद्ध णाम एगे प्रसुद्धरूवे, प्रसुद्ध णामं एगे सुद्धलवे, असुद्ध णाम एगे प्रसुद्धरूवे / एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पणत्ता, तं जहा-सुद्ध णामं एगे सुद्धस्वे, सुद्ध णामं एगे असुद्धरूवे, असुद्ध णामं एगे सुद्धरूवे, असुद्ध णामं एगे असुद्धरूवे] / पुनः वस्त्र चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे-- 1. कोई वस्त्र प्रकृति से शुद्ध और शुद्ध रूपवाला होता है। 2. कोई वस्त्र प्रकृति से शुद्ध, किन्तु अशुद्ध रूपवाला होता है / 3. कोई वस्त्र प्रकृति से अशुद्ध, किन्तु शुद्ध रूपवाला होता है / 4. कोई वस्त्र प्रकृति से अशुद्ध और अशुद्ध रूपवाला होता है / इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे-- 1. कोई पुरुष प्रकृति से शुद्ध और शुद्ध रूपवाला होता है / 2. कोई पुरुष प्रकृति से शुद्ध, किन्तु अशुद्ध रूपवाला होता है / 3. कोई पुरुष प्रकृति से अशुद्ध, किन्तु शुद्ध रूपवाला होता है / 4. कोई पुरुष प्रकृति से अशुद्ध और अशुद्ध रूपवाला होता है (26) / २७–चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-सुद्ध णामं एगे सुद्धमणे, [सुद्ध णाम एगे असुद्धमणे, प्रसुद्ध णामं एगे सुद्धमणे, असुद्ध णामं एगे असुद्धमणे। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे-- 1. कोई पुरुष जाति से शुद्ध और शुद्ध मनवाला होता है। 2. कोई पुरुष जाति से शुद्ध, किन्तु अशुद्ध मनवाला होता है। 3. कोई पुरुष जाति से अशुद्ध, किन्तु शुद्ध मनवाला होता है। 4. कोई पुरुष जाति से अशुद्ध और अशुद्ध मनवाला होता है (27) / २८-चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा सुद्ध' णाम एगे सुद्धसंकप्पे, सुद्ध णाम एगे असुद्धसंकप्पे, प्रसुद्ध णामं एगे सुद्धसंकप्पे, प्रसुद्धे णाम एगे असुद्धसंकप्पे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org