Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 748
________________ 680 ] [ स्थानाङ्गसूत्र से जहाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंयाणं प्राधाकम्मिएति वा उद्देसिएति वा मोसज्जाएति वा अज्झोयरएति वा पूतिए कीते पामिच्चे अच्छेज्जे अणिसट्टे अभिहडेति वा कतारभत्तेति वा दुखिमक्खमत्तेति वा गिलाणभत्तेति वा वद्दलियाभत्तति वा पाहुणभत्तेति वा मूलभोयणेति वा कंदभोयणेति वा फलभोयणेति वा बीयभोयणेति वा हरियभोयणेति वा पडिसिद्ध / एवामेव महापउमेवि अरहा समाणाणं णिग्गंथाणं आधाकम्मियं वा (उद्देसियं वा मीसज्जायं वा अज्झोयरयं वा पूतियं कोतं पामिच्चं अच्छेज्ज अणिसटुंअभिहडं वा कतारभत्तं वा दुभिक्खभत्तं वा गिलाणभत्तं वा वदलियाभतं वा पाहुणभत्तं वा मूलभोयणं वा कंदभोयणं वा फलभोयणं वा बीयभोयणं वा) हरितभोयणं वा पडिसेहिस्सति / से जहाणामए अज्जो! मए समणाणं णिगंथाणं पंचमहव्वतिए सपडिक्कमणे अचेलए धम्मे पण्णत्ते / एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं पंचमहव्वतियं (सपडिक्कमणं) अचेलगं धम्म पण्णवेहिति / से जहाणामए अज्जो ! मए समणोवासगाणं पंचाणुव्वतिए सत्तसिक्खावतिए-दुवालसविधे साबगधम्मे पण्णत्ते / एवामेव महापउमेवि अरहा समणोवासगाणं पंचाणुवतियं (सत्तसिखावलियं-- दुवालसविधं) सावगधम्मं पण्णवेस्सति / से जहाणामए अज्जो! मए समणाणं णिग्गंथाणं सेज्जातरपिडेति वा रायपिडेति वा पडिसिद्धे / एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं सेज्जातरपिडं वा रायपिडं वा पडिसेहिस्सति / से जहाणामए अज्जो ! मम णव गणा एगारस गणधरा / एवमेव महाप उमस्सवि अरहतो णव गणर एगारस गणधरा भविस्संति / से जहाणामए अज्जो! अहं तीसं वासाई अगारवासमझे वसित्ता मुडे भवित्ता (अगारामो अणगारियं) पव्वइए, दुवालस संबच्छराई तेरस पक्खा छउमत्थपरियागं पाउणित्ता तेरसहि पहि ऊणगाइं तीसं वासाई केलिपरियागं पाउणित्ता, बायालोसं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता, बावतरिवासाइं सव्वाउयं पालइत्ता सिज्झिस्सं (बुझिस्सं मुच्चिस्सं परिणिव्वाइस्सं) सव्वदुक्खाणमंतं करेस्सं / एवामेव महापउमेवि अरहा तीसं वासाई अगारवासमझे वसित्ता (मुडे भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं) पवाहिती, दुवालस संवच्छराई (तेरसपक्खा छउमत्थपरियागं पाउणित्ता. तेरसहिं पोहि ऊणगाइं तीसं वासाई केवलिपरियागं पाउणिता, बायालीसं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता), बावत्तरिवासाइं सवाउयं पालइत्ता सिज्झिहिती (बज्झिहिती मुच्चिहिती परिणिव्वाइहितो), सव्वदुक्खाणमंतं काहिती-- संग्रहणी-गाथा जस्सील-समायारो, अरहा तित्थंकरो महावीरो। तस्सील-समायारो, होति उ अरहा महापउमो // 1 // आर्यो ! श्रोणिक राजा भिम्भसार (बिम्बसार) काल मास में काल कर इसी रत्नप्रभा पृथ्वी के सीमन्तक नरक में चौरासी हजार वर्ष की स्थिति वाले नारकीय भाग में नारक रूप से उत्पन्न होगा (62) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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