Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 810
________________ 742] [ स्थानांगसूत्र या पाश्चर्यकारक घटनाएं घटी हैं। इनमें से पहली, दूसरी, चौथी, छठी और आठवीं घटना भगवान् महावीर के शासनकाल से सम्बन्धित हैं और शेष अन्य तीर्थंकरों के शासनकालों से सम्बन्ध रखती हैं / उनका विशेष विवरण अन्य शास्त्रों से जानना चाहिए / काण्ड-सूत्र १६१--इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवोए रयणे कंडे दस जोयणसयाई बाहल्लेणं पण्णते। इस रत्नप्रभा पृथिवी का रत्नकाण्ड दश सौ (1000) योजन मोटा कहा गया है (161) / 162- इमोसे णं रयणप्पभाए पुढवीए वइरे कंडे दस जोयणसताई बाहल्लेणं पण्णत्ते / इस रत्नप्रभा पृथिवी का वज्रकाण्ड दश सौ योजन मोटा कहा गया है (162) / १६३–एवं बेरुलिए, लोहितक्खे, मसारगल्ले, हंसगन्भे, पुलए, सोगंधिए, जोतिरसे, अंजणे, अंजणपुलए, रययं, जातरूवे, अंके, फलिहे, रिटे। जहा रयणे तहा सोलसविधा भाणितव्वा / इसी प्रकार वैडूर्यकाण्ड, लोहिताक्षकाण्ड. मसारगल्लकाण्ड, हंसगर्भकाण्ड पुलककाण्ड, सौगन्धिककाण्ड, ज्योतिरसकाण्ड. अंजनकाण्ड, अंजनपुलककाण्ड, रजतकाण्ड, जातरूपकाण्ड, अंककाण्ड, स्फटिककाण्ड और रिष्ट काण्ड भी दश सौ–दश सौ योजन मोटे कहे गये हैं / भावार्थ-रत्नप्रभापृथिवी के तीन भाग हैं-खरभाग, पंकभाग और अब्बहुल भाग। इनमें से खरभाग के सोलह भाग हैं, जिनके नाम उक्त सूत्रों में कहे गये हैं। प्रत्येक भाग एक-एक हजार योजन मोटा है / इन भागों को काण्ड, प्रस्तट या प्रसार कहा जाता है (163) / उदध-सूत्र १६४-सव्वेवि णं दीव-समुद्दा दस जोयणसताई उन्हेणं पण्णत्ता। सभी द्वीप और समुद्र दश सौ–दश सौ (एक-एक हजार) योजन गहरे कहे गये हैं (164) / १६५-सवेवि गं महादहा दस जोयणाई उन्वेहेणं पण्णत्ता। सभी महाद्रह दश-दश योजन गहरे कहे गये हैं (165) / १६६—सब्वेवि णं सलिलकुंडा दस जोयणाई उज्वेहेणं पण्णत्ता। सभी सलिलकुण्ड (प्रपातकुण्ड) दश-दश योजन गहरे कहे गये हैं (166) / 167 - सीता-सोतोया णं महाणईअो मुहमूले दस-दस जोयणाई उज्वेहेणं पण्णत्तायो / शीता-शीतोदा महानदियों के मुखमूल (समुद्र में प्रवेश करने के स्थान) दश-दश योजन गहरे कहे गये हैं (167) / नक्षत्र-सूत्र १६८-कत्तियाणक्खत्ते सम्बबाहिराओ मण्डलामो दसमे मंडले चारं चरति / कृत्तिका नक्षत्र चन्द्रमा के सर्वबाह्य-मण्डल से दशवें मण्डल में संचार (गमन) करता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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