Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 751
________________ नवम स्थान ] [683 पार्यो ! मैंने श्रमरण-निर्ग्रन्थों के लिए जैसे पांच कामगुणों का निरूपण किया है, जैसे---शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श / इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए पांच कामगुणों का निरूपण करेंगे / जैसे—शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श / आर्यो ! मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए जैसे छह जीवनिकायों का निरूपण किया है, यथा-- पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक और त्रसकायिक / इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए छह जीवनिकायों का निरूपण करेंगे / जैसे—पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक और त्रसकायिक / आर्यो ! मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए जैसे सात भयस्थानों का निरूपण किया है, जैसे-- इहलोकभय, परलोकभय, प्रादानभय, अकस्माद् भय, वेदनाभय, मरणभय और अश्लोकभय। इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए सात भयस्थानों का निरूपण करेंगे। जैसेइहलोकभय, परलोकभय, आदानभय, अकस्माद्भय, वेदनाभय, मरणभय और अश्लोकभय / आर्यो ! मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए जैसे आठ मदस्थानों का, नौ ब्रह्मचर्य गुप्तियों का, दशप्रकार के श्रमण-धर्मों का यावत् तेतीस आशातनाओं का निरूपण किया है इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए पाठ मदस्थानों का, नौ ब्रह्मचर्यगुप्तियों का, दश प्रकार के श्रमण-धर्मों का यावत् तेतीस पाशातनाओं का निरूपण करेंगे। __ पार्यो ! मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए जैसे नग्नभाव, मुण्डभाव, स्नान-त्याग, दन्त-धावनत्याग, छत्र-धारण-त्याग, उपानह (जूता) त्याग, भूमिशय्या, फलकशय्या, काष्ठशय्या, केशलोंच, ब्रह्मचर्यवास, और परगृहप्रवेश कर लब्ध-अपलब्ध वृत्ति (आदर-अनादरपूर्वक प्राप्त भिक्षा) का निरूपण किया है, इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए नग्नभाव, मुण्डभाव, स्नानत्याग, भूभिशय्या, फलकशय्या, काष्ठशय्या, केशलोंच, ब्रह्मचर्यवास और परगृहप्रवेश कर लब्ध-अलब्ध वृत्ति का निरूपण करेंगे। आर्यो ! मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए जैसे आधामिक, औद्देशिक, मिश्रजात, अध्यवपूरक, पूतिक, क्रीत, प्रामित्य, आछेद्य, अनिसृष्ट, अभ्याहृत, कान्तारभक्त, दुभिक्षभक्त, ग्लानभक्त, वादलिकाभक्त, प्राणिकभक्त, मूलभोजन, कन्दभोजन, फलभोजन, बीजभोजन और हरितभोजन का निषेध किया है, उसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए आधार्मिक, प्रौद्द शिक, मिश्रजात, अध्यवपूरक, पूतिक, क्रीत, प्रामित्य, आछेद्य, अनिसृष्टिक, अभ्याहृत, कान्तारभक्त, दुर्भिक्षभक्त, ग्लानभक्त, वादलिकाभक्त, प्राणिकभक्त, मूलभोजन, कन्दभोजन, फलभोजन, बीजभोजन, कन्दभोजन, फलभोजन, बीजभोजन और हरितभोजन का निषेध करेंगे / __ आर्यो! मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए जैसे—प्रतिक्रमण और अचेलतायुक्त पांच महाव्रतरूप धर्म का निरूपण किया है, इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए प्रतिक्रमण और अचेलतायुक्त पांच महाव्रतरूप धर्म का निरूपण करेंगे। पार्यो ! मैंने श्रमणोपासकों के लिए जैसे पांच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत रूप बारह प्रकार के श्रावकधर्म का निरूपण किया है, इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी पांच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रतरूप बारह प्रकार के श्रावकधर्म का निरूपण करेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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