Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 783
________________ दशम स्थान ] [715 10. उपघात-निश्रित-मृषा--दूसरों को पीड़ा-कारक सत्य भी असत्य है। जैसे—काने को काना कह कर पुकारना। इस प्रकार उपघात के निमित्त से मृषा या असत् वचन बोलना (60) / ९१-दसविधे सच्चामोसे पण्णत्ते, तं जहा--उप्पण्णमोसए, विगतमोसए, उप्पण्णविगतमीसए, जीवमीसए, अजीवमीसए, जीवाजोवमीसए, अणंतमीसए, परित्तमोसए, अद्धामोसए, अद्धद्धामीसए / सत्यमृषा (मिश्र) वचन दश प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. उत्पन्न-मिश्रक-वचन-उत्पत्ति से संबद्ध सत्य-मिश्रित असत्य बचन बोलना / जैसे--- ___ 'पाज इस गाँव में दश बच्चे उत्पन्न हुए हैं।' ऐसा बोलने पर एक अधिक या हीन भी हो सकता है। 2. विगत-मिश्रक-वचन--विगत अर्थात् मरण से संबद्ध सत्य-मिश्रित असत्य वचन बोलना। जैसे—'आज इस नगर में दश व्यक्ति मर गये हैं।' ऐसा बोलने पर एक अधिक या हीन भी हो सकता है। 3.. उत्पन्न-विगत-मिश्रक-उत्पत्ति और मरण से सम्बद्ध सत्य मिश्रित असत्य वचन बोलना। जैसे-याज इस नगर में दश बच्चे उत्पन्न हुए और दश ही बूढ़े मर गये हैं। ऐसा बोलने पर इससे एक-दो हीन या अधिक का जन्म या मरण भी संभव है। 4. जीव-मिश्रक-वचन--अधिक जीते हुए कृमि-कीटों के समूह में कुछ मृत जीवों के होने पर भी उसे जीवराशि कहना / 5. अजीव-मिश्रक-वचन--अधिक मरे हुए कृमि-कीटों के समूह में कुछ जीवितों के होने पर भी उसे मृत या ग्रजीवराशि कहना। 6. जीव-ग्रजीव-मिश्रक-वचन-जीवित और मृत राशि में संख्या को कहते हुए कहना कि इतने जीवित हैं और इतने मृत हैं। ऐसा कहने पर एक-दो के हीन या अधिक जीवित या मृत की भी संभावना है। 7. अनन्त-मिश्रक-वचन–पत्रादि संयुक्त मूल कन्दादि वनस्पति में 'यह अनन्तकाय है' ऐसा वचन बोलना अनन्त-मिश्रक मृषा वचन है। क्योंकि पत्रादि में अनन्त नहीं, किन्तु परीत (सीमित संख्यात या असंख्यात) ही जीव होते हैं। 8. परीत-मिश्रक-वचन–अनन्तकाय की अल्पता होने पर भी परीत वनस्पति में परीत का व्यवहार करना। 6. श्रद्धा-मिश्रक-वचन–श्रद्धा अर्थात् काल-विषयक सत्यासत्य वचन बोलना। जैसे-- प्रयोजन विशेष के होने पर साथियों से सूर्य के अस्तंगत होते समय 'रात हो गई' ऐसा कहना। 10. अद्धा-अद्धा-मिश्रक-वचन-अद्धा दिन या रातरूप काल के विभाग में भी पहर आदि सम्बन्धी सत्यासत्य वचन बोलना। जैसे-एक पहर दिन बीतने पर भी प्रयोजन-वश कार्य की शीघ्रता से 'मध्याह्न हो गया' कहना (61) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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