Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 799
________________ दशम स्थान ] [ 731 भाविभद्रत्व-सूत्र १३३–दहि ठाणेहि जोवा प्रागमेसिभइत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहाअणिदाणताए, दिद्विसंपण्णताए, जोगवाहिताए, खंतिखमणताए, जितिदियताए, अमाइल्लताए, अपासस्थताए, सुसामण्णताए, पवयणवच्छल्लताए, पवयणउम्भावणताए। दश कारणों से जीव आगामी भद्रता (पागामीभव में देवत्व की प्राप्ति और तदनन्तर मनुष्यभव पाकर मुक्ति-प्राप्ति) के योग्य शुभ कार्य का उपार्जन करते हैं / जैसे 1. निदान नहीं करने से तप के फल से सांसारिक सुखों की कामना न करने से / 2. दृष्टिसम्पन्नता से--सम्यग्दर्शन की सांगोपांग आराधना से / 3. योगवाहिता से—मन, वचन, काय की समाधि रखने से / 4. क्षान्तिक्षमणता से-समर्थ होकर के भी अपराधी को क्षमा करने एवं क्षमा धारण करने से / 5. जितेन्द्रियता से—पाँचों इन्द्रियों के विषयों को जीतने से / 6. ऋजुता से-मन, वचन, काय की सरलता से / 7. अपार्श्वस्थता से–चारित्र पालने में शिथिलता न रखने से / 8. सुश्रामण्य से---श्रमण धर्म का यथाविधि पालन करने से / 6. प्रवचनवत्सलता से-जिन-पागम और शासन के प्रति गाढ 10. प्रवचन-उद्भावनता से---आगम और शासन की प्रभावना करने से (133) / आशंसा-प्रयोग-सूत्र १३४–दसविहे प्रासंसप्पनोगे पण्णत्ते, तं जहा- इहलोगासंसप्पनोगे, परलोगासंसप्पनोगे, दुहोलोगासंसप्पनोगे, जीवियासंसप्पभोगे, मरणासंसप्पनोगे, कामासंसप्पनोगे, भोगासंसपोगे, लाभासंसप्पनोगे, पूयासंसप्पओगे, सक्कारासंसप्पप्रोगे। आशंसा प्रयोग (इच्छा-व्यापार) दश प्रकार का कहा गया है / जैसे१. इहलोकाशंसा प्रयोग-इस लोक-सम्बन्धी इच्छा करना। 2. परलोकाशंसा प्रयोग-परलोक-सम्बन्धी इच्छा करना / 3. द्वयलोकशंसा प्रयोग-दोनों लोक-सम्बन्धी इच्छा करना। 4. जीविताशंसा प्रयोग-जीवित रहने की इच्छा करना। 5 मरणाशंसा प्रयोग-मरने की इच्छा करना / 6. कामाशंसा प्रयोग-काम (शब्द और रूप) की इच्छा करना। 7 भोगाशंसा प्रयोग-भोग (गन्ध, रस और स्पर्श) की इच्छा करना। 8. लाभाशंसा प्रयोग-लौकिक लाभों की इच्छा करना / / 6. पूजाशंसा प्रयोग-पूजा, ख्याति और प्रशंसा प्राप्त करने की इच्छा करना / 10. सत्काराशंसा प्रयोग-दूसरों से सत्कार पाने की इच्छा करना (134) / धर्म-सूत्र १३५--दसविध धम्मे पण्णत्ते, तं जहा-गामधम्मे, णगरधम्मे, रट्ठधम्मे, पासंडधम्मे, कुलधम्मे, गणधम्मे, संघधम्मे, सुयधम्मे, चरित्तधम्मे, अत्थिकायधम्में। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827