Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 747
________________ नवम स्थान } [676 तए णं से भगवं अणगारे भक्स्सिति-इरियासमिते भासासमिते एवं जहा बद्धमाणसामी तं चेव गिरवसेसं जाव अव्वाचारविउसजोगजुत्ते / __ तस्स णं भगवंतस्स एतेणं विहारेणं विहरमाणस्स दुवालसहि संवच्छरेहि वोतिक्कतेहि तेरसहि य पद्धेहि तेरसमस्स णं संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अणुत्तरेणं णाणेणं जहा भावणाते केवलवरणाणदंसणे समपन्जिहिति / जिणे भविस्सति केवली सव्वण्ण सव्वदरिसी सणेरइय जाव पंच महब्बयाई सभावणाई छच्च जीवणिकाए धम्म देसेमाणे विहरिस्सति / / से जहाणामए प्रज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं ऐगे प्रारंमठाणे पण्णते। एवामेव महापउमेवि परहा समणाणं णिग्गंथाणं एगं प्रारंभठाणं पण्णवेहिति / __ से जहाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिगंथाणं दुविहे बंधणे पण्णत्ते, तं जहा—पेज्जबंधणे य, दोसबंधणे य। एवामेव महापउमेवि परहा समणाणं णिग्गंथाणं दुविहं बंधणं पण्णवेहिति, तं जहा-- पेज्जबंधणं च, दोसबंधणं च / से जहाणामए प्रज्जो ! मए समणाणं णिगंथाणं तो दंडा पण्णत्ता, तं जहा–मणदंडे, वयदंडे, कायदंडे / एवामेव महाप उमेवि परहा समणाणं णिग्गंथाणं तो दंडे पण्णवेहिति, तं जहामणोदंडं, वयदंडं, कायदंडं / से जहाणामए (अज्जो! मए समणाणं णिग्गंथाणं चत्तारि कसाया पण्णता, तं जहाकोहकसाए, माणकसाए, मायाकसाए, लोभकसाए / एवामेव महापउमेवि परहा समणाणं णिगंथाणं चत्तारि कसाए पण्णवेहिति, तं जहा-कोहकसायं, माणकसायं, मायाकसायं, लोभकसायं। __से जहाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं पंच कामगुणा पण्णत्ता, त जहा-सद्दे, रूवे, गंधे, रसे, फासे / एवामेव महापउमेवि परहा समणाणं णिग्गंथाणं पंच कामगुणे पण्णवेहिति, त जहा-सई, रूवं, गंध, रसं, फासं / से जहाणामए प्रज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं छज्जीवणिकाया पण्णत्ता, तौं जहा–पुढविकाइया, प्राउकाइया, ते उकाइया, वाउकाइया, वणस्सइकाइया, तसकाइया। एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं छज्जीवणिकाए पण्णवेहिति, त जहा-पुढविकाइए, आउकाइए, तेउकाइए, वाउकाइए, वणस्सइकाइ), तसकाइए। से जहाणामए (प्रज्जो! मए समणाणं णिग्गंथाणं) सत्त भयढाणा पण्णत्ता, त जहा--- (इहलोगभए, परलोंगभए, आदाणभए, अकम्हाभए, वेयणभए, मरणभए, असिलोगभए)। एवामेव महापउमेवि अरहा समणाण जिग्गंथाणं सत्त भयदाणे पाणवेहिति, (तजहा इहलोगभयं परलोगभयं प्रादाण भयं प्रकम्हाभयं वेयणभयं मरणभयं असिलोगभयं)। एवं अटु मयदाणे, णव बंभचेरगुत्तोमो, दसविधे समणधम्मे, एवं जाव तेत्तीसमासातणाउत्ति / से जहाणामए अज्जो ! मए समणाणं णिग्गंथाणं जग्गभावे मुडभावे अण्हाणए अदंतवणए अच्छत्तए अगुवाहणए भूमिसेज्जा फलगसेज्जा कट्टसेज्जा केसलोए बंभचेरवासे परघरपवेसे लद्धावलद्धवितीनो पण्णत्तानो। एवामेव महापउमेवि अरहा समणाणं णिग्गंथाणं णग्गभावं (मुडभावं अण्हाणयं अदंतवणयं अच्छत्तयं अणुवाहणयं भूमिसेज्जं फलगसेज्जं कटुसेज्ज केसलोयं बंभचेरवासं परघरपवेस) लद्धावलद्ध वित्ती पण्णवेहिति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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