Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Agam Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 745
________________ नवम स्थान ] [ 677 पार्श्व-उच्चत्त्व-सूत्र ५६-पासे णं अरहा पुरिसादाणिए वज्जरिसहणारायसंघयणे समचउरंस-संठाण-संठिते णव रयणीअो उड्ढं उच्चत्तेणं हुत्था / पुरुषादानीय (पुरुष-प्रिय) वज्रर्षभनाराचसंहनन और समचतुरस्रसंस्थान वाले पार्व अर्हत् नौ हाथ ऊंचे थे (56) / तीर्थकर नामनिर्वतन-सूत्र ६०-समणस्स णं भगवतो महावीरस्स तित्थंसि पर्वाह जीवेहि तित्थगरणामगोत्ते कम्मे णिवत्तिते, तं जहा सेणिएणं, सुपासेणं, उदाइणा, पोट्टिलेणं अणगारेणं, दढाउणा, संखेणं, सतएणं, सुलसाए सावियाए, रेवतीए / श्रमण भगवान महावीर के तीर्थ में नौ जीवों ने तीर्थकर नाम गोत्र कर्म अजित किया था जैसे 1. श्रेणिक, 2. सुपार्श्व, 3. उदायी 4. पोट्टिल अनगार, 5. दृढायु, 6. श्रावक शंख, 7. श्रावक शतक, 8. श्राविका सुलसा, 6. श्राविका रेवती (60) / भावितीर्थकर-सूत्र ६१–एस णं अज्जो ! कण्हे वासुदेवे, रामे बलदेवे, उदए पेढालपुत्ते, पुट्टिले, सतए गाहावती, दारुए णियंठे, सच्चई णियंठीपुत्ते, सावियबुद्ध अंब [म्म ? ] डे परिवायए, अज्जावि णं सुपासा पासावच्चिज्जा / प्रागमेस्साए उस्सप्पिणीए चाउज्जामं धम्मं पण्णवइत्ता सिज्झिहिति (बुझिहिंति मुच्चिहिति परिणिध्वाइहिति सव्वदुक्खाणं) अंतं काहिति / / हे आर्यो ! 1. वासुदेव कृष्ण, 2. बलदेव राम, 3. उदक पेडाल पुत्र, 4. पोटिल, 5. गृहपति शतक, 6. निम्रन्थ दारुक, 7. निर्ग्रन्थीपुत्र सत्यकी, 8. श्राविका के द्वारा प्रतिबुद्ध अम्मड परिव्राजक, 6. पार्श्वनाथ की परम्परा में दीक्षित आर्या सुपार्वा, ये नौ आगामी उत्सर्पिणी में चातुर्याम धर्म की प्ररूपणा कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, परिनिर्वृत्त और सर्व दुःखों से रहित होंगे (61) / महापद्म-तीर्थकर-सूत्र ६२-एस णं अज्जो ! सेणिए राया भिभिसारे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवोए सीमंतए णरए चउरासीतिवाससहस्सद्वितीयंसि णिरयंसि रइयत्ताए उववज्जिहिति / से णं तत्थ गेरइए भविस्सति–काले कालोभासे (गंभीरलोमहरिसे भीमे उत्तासणए) परमकिण्हे वणेणं / से गं तस्थ वेयणं वेदिहिती उज्जलं (ति उलं पगाढं कडुयं कक्कसं चंडं दुक्खं दुग्गं दिव्व) दुरहियास / से णं ततो गरयानो उन्यता प्रागमेसाए उस्सप्पिणीए इहेव जंबुद्दीवे दोवे भरहे वासे वेयडगिरिपायमूले पुडेसु जणवएसु सतदुवारे गगरे संमुइस्स कुलकरस्स भद्दाए भारियाए कुच्छिसि पुमत्ताए पच्चायाहिति। तए णं सा भद्दा भारिया णवण्हं मासाणं बहपडिपुग्णाणं अद्धढमाण य राइंदियाणं वोतिक्कताणं सुकुमालपाणिपायं अहीण-पडिपुण्ण-पंचिदिय-सरीरं लक्खण-वंजण-(गुणोववेयं माणुम्माण-प्पमाण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827