________________ 328 ] [ स्थानाङ्गसूत्र ३७८---[चत्तारि जुग्गा पण्णत्ता, तं जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, जुत्ते णाममेगे अजुतसोमे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तसोमे, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तसोभे। __ एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा-जुत्ते णाममेंगे जुत्तसोमे, जुत्ते णाममेगे अजुत्तसोभे, अजुत्ते णाममेगे जुत्तसोभे, प्रजुत्ते णाममेगे प्रजुत्तसोभे] / पुनः युग्य चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. युक्त और युक्त-शोभ-कोई युग्य युक्त और युक्त शोभा वाला होता है। 2. युक्त और अयुक्त-शोभ-कोई युग्य युक्त, किन्तु अयुक्त शोभा बाला होता है / 3. अयुक्त और युक्त-शोभ-कोई युग्य अयुक्त, किन्तु युक्त शोभा वाला होता है / 4. अयुक्त और अयुक्त-शोभ-कोई युग्य अयुक्त और अयुक्त शोभा वाला होता है / इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे-- 1. युक्त और युक्त-शोभ-कोई पुरुष युक्त और युक्त शोभा वालो होता है। 2. युक्त और अयुक्त-शोभ-कोई पुरुष युक्त, किन्तु प्रयुक्त शोभा वाला होता है / 3. अयुक्त और युक्त-शोभ-कोई पुरुष अयुक्त, किन्तु युक्त शोभा वाला होता है। 4. अयुक्त और अयुक्त-शोभ-कोई पुरुष प्रयुक्त और प्रयुक्त शोभा वाला होता है (378) / सारथि-सत्र ३७६-चत्तारि सारही पण्णत्ता, तं जहा-जोयावइत्ता णाम एगे णो विजोयावइत्ता, विजोयावइत्ता णाममेगे णो जोयावइत्ता, एगे जोयावइत्तावि विजोयावइत्तावि, एगे णो जोयावइत्ता णो विजोयावइत्ता। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-जोयावइत्ता णामं एगे णो विजोयावइत्ता, विजोयावइत्ता णाम एगे जो जोयावइत्ता, एगे जोयावइत्तावि विजोयावइत्तावि, एगे जो जोयावइत्ता गो विजोयावइत्ता। सारथि (रथ-वाहक) चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. योजयिता, न वियोजयिता--कोई सारथि घोड़े आदि को रथ में जोड़ने वाला होता है, किन्तु उन्हें मुक्त करने वाला नहीं होता। 2. वियोजयिता, न योजयिता--कोई सारथि घोड़े आदि को रथ से मुक्त करने वाला होता है, किन्तु उन्हें रथ में जोड़ने वाला नहीं होता। 3. योजयिता भी, वियोजयिता भी कोई सारथि घोड़े आदि को रथ में जोड़ने वाला भी होता है और उन्हें रथ से मुक्त करने वाला भी होता है। 4. न योजयिता, न वियोजयिता--कोई सारथि न रथ में घोड़े आदि को जोड़ता ही है और ___ न उन्हें रथ से मुक्त ही करता है / इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे-- 1. योजयिता, न वियोजयिता--कोई पुरुष दूसरों को उत्तम कार्यों से युक्त तो करता है किन्तु अनुचित कार्यों से उन्हें वियुक्त नहीं करता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org