________________ 510] [ स्थानाङ्गसूत्र मुंड-सूत्र १७७–पंच मुंडा पणत्ता, तं जहा-सोतिदियमुडे, चक्खिदियडे, घाणिदियमंडे, जिम्भिदियमुडे, फासिदियमुडे। अहवा-पंच मुंडा पण्णत्ता, त जहा-कोहमुंडे, माणमडे, मायामुडे, लोभमुडे, सिरमुडे / मुण्ड (इन्द्रियविषय-विजेता) पांच प्रकार के कहे गये हैं। जैसे-- 1. श्रोत्रेन्द्रियमुण्ड-शुभ-अशुभ शब्दों में राग-द्वेष के विजेता। 2. चक्षुरिन्द्रियमुण्ड-शुभ-अशुभ रूपों में राग-द्वेष के विजेता / 3. घ्राणेन्द्रियमुण्ड-शुभ-अशुभ गन्ध में राग-द्वेष के विजेता। 4. रसनेन्द्रियमुण्ड-शुभ-अशुभ रसों में राग-द्वेष के विजेता / 5. स्पर्शनेन्द्रियमुण्ड-शुभ-अशुभ स्पर्शों में राग-द्वेष के विजेता / अथवा मुण्ड पांच प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. क्रोधमुण्ड-क्रोध कषाय के विजेता / 2. मानमुण्ड-मान कषाय के विजेता। 3. मायामण्ड-माया कषाय के विजेता / 4. लोभमुण्ड-लोभ कषाय के विजेता। 5. शिरोमुण्ड-मुडे शिरवाला / (177) बादर-सूत्र १७८-अहेलोगे णं पंच बायरा पण्णत्ता, त जहा-पुढविकाइया, पाउकाइया, वाउकाइया, वणस्सइकाइया, पोराला तसा पाणा। अधोलोक में पाँच प्रकार के बादर जीव कहे गये हैं / जैसे 1. पृथिवीकायिक, 2. अप्कायिक, 3. वायुकायिक, 4. वनस्पतिकायिक, 5. उदार त्रस (द्वीन्द्रियादि) प्राणी / (178) १७६-उद्दलोगे णं पंच बायरा पण्णत्ता, त जहा—(पुढविकाइया, पाउकाइया, वाउकाइया, वणस्सइकाइया, पोराला तसा पाणा)। ऊर्ध्वलोक में पाँच प्रकार के बादर जीव कहे गये हैं। जैसे-- 1. पृथिवीकायिक, 2. अप्कायिक, 3. वायुकायिक, 4. वनस्पतिकायिक, 5. उदारत्रस प्राणी / (176) १८०–तिरियलोगे णं पंच बायरा पण्णता, तं जहा-एगिदिया, (बेइंदिया, तेइंदिया, चरिदिया) पंचिदिया। तिर्यकलोक में पाँच प्रकार के बादर जीव कहे गये हैं। जैसे१. एकेन्द्रिय, 2. द्वीन्द्रिय, 3. त्रीन्द्रिय, 4. चतुरिन्द्रिय, 5. पंचेन्द्रिय / (180) १८१-पंचविहा बायरतेउकाइया पण्णत्ता, तं जहा-इंगाले, जाले, मुम्मुरे, अच्ची, अलाते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org