________________ षष्ठ स्थान ] [557 अवमरान-सत्र 66- छ प्रोमरत्ता पण्णत्ता, त जहा ततिए पव्वे, सत्तमे पव्वे, एक्कारसमे पव्वे, पण्णरसमे पवे, एगूणवीसइमे पव्वे, तेवीसइमे पव्वे / छह अवमरात्र (तिथि-क्षय) कहे गये हैं / जैसे१. तीसरा पर्व-आषाढ कृष्णपक्ष में / 2. सातवाँ पर्व-भाद्रपद कृष्णपक्ष में / 3. ग्यारहवाँ पर्व-कार्तिक कृष्णपक्ष में / 4. पन्द्रहवाँ पर्व-पौष कृष्णपक्ष में / 5. उन्नीसवाँ पर्व-फाल्गुन कृष्णपक्ष में / 6. तेईसवाँ पर्व-वैशाख कृष्णपक्ष में। (66) अतिरान सूत्र ९७-छ प्रतिरत्ता पण्णता, त जहा-चउत्थे पव्वे, अट्ठमे पवे, दुवालसमे पव्वे, सोलसमे पव्वे, वीसइमे पव्वे, चउवीसइमे पव्वे / छह अतिरात्र (तिथिवृद्धि वाले पर्व) कहे गये हैं। जैसे--- 1. चौथा पर्व-आषाढ़ शुक्लपक्ष में / 2. आठवाँ पर्व-भाद्रपद शुक्लपक्ष में ! 2. बारहवाँ पर्व-कार्तिक शुक्लपक्ष में / 4. सोलहवां पर्व-पौष शक्लपक्ष में। 5. वीसवाँ पर्व-फाल्गुन शुक्ल पक्ष में / 6. चौवीसवां पर्व-वैशाख शुक्लपक्ष में। अर्थावग्रह-सूत्र ९८-आभिणिबोहियणाणस्स णं छबिहे अत्थगहे पण्णते, त जहा-सोइंदियस्थोग्गहे, (चखिदिययोग्गहे, घाणिदियस्थोग्गहे, जिन्भिदियत्थोग्गहे, कासिदियत्थोग्गहे), णोइंदियत्थोग्गहे / आभिनिबोधिक (मतिज्ञान) ज्ञान का अर्थावग्रह छह प्रकार का कहा गया है। जैसे१. श्रोत्रेन्द्रिय-अर्थावग्रह, 2. चक्षुरिन्द्रिय-अर्थावग्रह. 3. घ्राणेन्द्रिय-अर्थावग्रह, 4. रसनेन्द्रिय अर्थावग्रह, 5, स्पर्शनेन्द्रिय-अर्थावग्रह, 6. नोइन्द्रिय-अर्थावग्रह / विवेचन-अवग्रह के दो भेद हैं-व्यंजनावग्रह और अर्थावग्रह / उपकरणेन्द्रिय और शब्दादि ग्राह्य विषय के संबंध को, व्यंजन कहते हैं। दोनों का संबंध होने पर अव्यक्त ज्ञान की किचित् मात्रा उत्पन्न होती है। उसे व्यंजनावग्रह कहते हैं / यह चक्षु और मन से न होकर चार इन्द्रियों द्वारा ही होता है क्योंकि चार इन्द्रियों का ही अपने विषय के साथ संयोग होता है---चक्षु और मन का नहीं / अतएव व्यंजनावग्रह के चार प्रकार हैं / इसका काल असंख्यात समय है। व्यंजनावग्रह के पश्चात् अर्थावग्रह उत्पन्न होता है / उसका काल एक समय है / वह वस्तु के सामान्य धर्म को जानता है / इसके छह भेद यहाँ प्रतिपादित किए गए हैं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org