________________ 560 ] [स्थानाङ्गसूत्र विवेचन-परीषह और उपसर्गादि को सहने की सामर्थ्य-वद्धि के लिए जो शारीरिक कष्ट सहन किये जाते हैं, वे सब कायक्लेशतप के अन्तर्गत हैं। ग्रीष्म में सूर्य-आतापना लेना, शीतकाल में वस्त्रविहीन रहना और डाँस-मच्छरों के काटने पर भी शरीर को न खुजाना आदि भी इसी तप के अन्तर्गत जानना चाहिए। क्षेत्र-पर्वत-नदी-सूत्र ५०-जंबुद्दीवे दोवे सत्त वासा पण्णता, तं जहा-भरहे, एरवते, हेमक्ते, हेरण्णवते, हरिवासे, रम्भगवासे, महाविदेहे। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में सात वर्ष (क्षेत्र) कहे गये हैं / जैसे१. भरत 2. ऐरवत, 3. हैमवत, 4. हैरण्यवत, 5. हरिवर्ष, 6. रम्यक वर्ष, 7. महाविदेह (50) / ५१---जंबुद्दीवे दोवे सत्त वासहरपवता पण्णत्ता, त जहा-चुल्ल हिमवंते, महाहिमवंते, णिसढे, णीलवंते, रुप्पी, सिहरी, मंदरे / जम्बूद्वीप नामक द्वीप में सात वर्षधर पर्वत कहे गये हैं। जैसे 1. क्षुद्रहिमवान्, 2. महाहिमवान्, 3. निषध, 4, नीलवान्, 5., रुक्मी 6. शिखरी, 7. मन्दर (सुमेरु पर्वत) (51) / ५२-जंबुद्दीवे दीवे सत्त महाणदीश्रो पुरस्थाभिमुहीमो लवणसमुदं समति, त जहा—गंगा, रोहिता, हरी, सीता, णरकता, सुवण्णकूला, रता। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में सात महानदियां पूर्वाभिमुख होती हुई लवण-समुद्र में मिलती हैं। जैसे 1. गंगा, 2. रोहिता, 3. हरित, 4. सीता, 5. नरकान्ता, 6. सुवर्णकूला, 7. रक्ता (52) / ५३--जंबुद्दीवे दोबे सत्त महाणदीओ पच्चत्याभिमुहीमो लवणसमुदं समति, त जहा-सिंधू, रोहितंसा, हरिकता, सीतोदा, णारिकता, रुप्पकूला, रत्तावती। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में सात महानदियां पश्चिमाभिमुख होती हुई लवण-समुद्र में मिलती हैं / जैसे 1. सिन्धु, 2, रोहितांशा, 3. हरिकान्ता, 4. सीतोदा, 5. नारीकान्ता, 6. रूप्यकूला, 7. रक्तवती (53) / ५४--धायइसंडदीवपुरथिमद्धे गं सत्त बासा पण्णता, त जहा-भरहे, (एरवते, हेमवते, हेरण्णवते, हरिवासे, रम्मगवासे), महाविदेहे / धातकीषण्डद्वीप के पूर्वार्ध में सात वर्ष (क्षेत्र) कहे गये हैं। जैसे 1. भरत, 2. ऐरवत, 3. हैमवत, 4. हैरण्यवत, 5. हरिवर्ष, 6. रम्यक वर्ष, 7. महाविदेह (54) / ५५–धायइसंडदीवपुरत्यिमद्ध णं सत्त वासहरपन्वता पण्णत्ता, त जहा-चुल्लहिमवंते, (महाहिमवंते, णिसढे, णोलवते, रुप्पी, सिहरी), मंदरे / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org