________________ षष्ठ स्थान] [ 563 4. बहणीय-रस, मांसादि, धातुओं को बढ़ाने वाला / 5. मदनीय-कामशक्ति को बढ़ाने वाला। 6. दर्पणीय-शरीर का पोषण करने वाला, उत्साहवर्धक (106) / विषपरिणाम-सूत्र ११०-छविहे विसपरिणामे पण्णत्ते, त जहा–डक्के, भुत्ते, णिवतिते, मसाणुसारी, सोणिताणुसारी, अट्टिमिजाणुसारी। विष का परिणाम या विपाक छह प्रकार का कहा गया है / जैसे१. दष्ट-किसी विषयक्त जीव के द्वारा काटने पर प्रभाव डालने वाला। 2. भुक्त-खाये जाने पर प्रभाव डालने वाला। 3. निपतित-शरीर के बाहिरी भाग से स्पर्श होने पर प्रभाव डालने वाला / 4. मांसानुसारी मांस तक की धातुओं पर प्रभाव डालने वाला। 5. शोणितानुसारी-रक्त तक की धातुओं पर प्रभाव डालने वाला। 6. अस्थि-मज्जानुसारी-अस्थि और मज्जा तक प्रभाव डालने वाला (110) / पृष्ठ-सूत्र १११–छविहे पट्ठ पग्णत्ते, तजहा-संसयपटु, बुग्गहपटु, अणुजोगी, अणुलोमे, तहणाणे, अतहणाणे। प्रश्न छह प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. संशय-प्रश्न--संशय दूर करने के लिए पूछा गया। 2. व्युद्-ग्रह-प्रश्न---मिथ्याभिनिवेश से दूसरे को पराजित करने के लिए पूछा गया / 3. अनुयोगी-प्रश्न-अर्थ-व्याख्या के लिए पूछा गया / 4. अनुलोम-प्रश्न–कुशल-कामना के लिए पूछा गया / 5. तथाज्ञान प्रश्न-स्वयं जानते हुए भी दूसरों को ज्ञानवृद्धि के लिए पूछा गया। 6. अतथाज्ञान प्रश्न-स्वयं नहीं जानने पर जानने के लिए पूछा गया (111) / विरहित-सूत्र ११२----चमरचंचा णं रायहाणी उक्कोसेणं छम्मासा विरहिया उववातेणं / चमरचंचा राजधानी अधिक से अधिक छह मास तक उपपात से (अन्य देव की उत्पत्ति से) रहित रहती है (112) / ११३–एगमेगे णं इंदट्ठाणे उक्कोसेणं छम्मासे विरहिते उववातेणं / एक-एक इन्द्र-स्थान उत्कर्ष से छह मास तक इन्द्र के उपपात से रहित रहता है (113) / ११४--अधेसत्तमा णं पुढवो उक्कोसेणं छम्मासा विरहिता उबवातेणं / / अधःसप्तम महातमः पृथिवी उत्कर्ष से छह मास तक नारकीजीव के उपपात से रहित रहती है (114) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org