________________ सप्तम स्थान ] [ 577 3. मैं दूसरों के लिए स्थान की याचना करूंगा, किन्तु दूसरों के द्वारा याचित स्थान में नहीं रहूंगा। यह अवग्रहप्रतिमा यथालन्दिक साधुओं के होती है। उनका सूत्र अध्ययन जो शेष रह जाता है, उसे पूर्ण करने के लिए वे आचार्य से सम्बन्ध रखते हैं / अतएव वे प्राचार्य के लिए स्थान की याचना करते हैं, किन्तु स्वयं दूसरे साधुओं के द्वारा याचित स्थान में नहीं रहते। 4. मैं दूसरों के लिए स्थान की याचना नहीं करूंगा, किन्तु दूसरों के द्वारा याचित स्थान में रहूंगा। यह अवग्रहप्रतिमा जिनकल्पदशा का अभ्यास करने वाले साधुओं के होती है। 5. मैं अपने लिए स्थान की याचना करूगा, दूसरों के लिए नहीं / यह प्रवग्रह-प्रतिमा जिनकल्पी साधुओं के होती है। 6. जिस शय्यातर का मैं स्थान ग्रहण करूगा, उसी के यहाँ धान-पलाल आदि सहज ही प्राप्त होगा, तो लगा, अन्यथा उकडू या अन्य नैषधिक प्रासन से बैठकर ही रात बिताऊंगा / यह अभिग्रह प्रतिमा जिनकल्पी या अभिग्रह विशेष के धारी साधुओं के होती है। 1. जिस शय्यातर का में स्थान ग्रहण करूगा, उसी के यहां सहज ही विछे हए काष्ठपद ख्ता, चौकी) आदि प्राप्त होगा तो लगा, अन्यथा उकड आदि आसन से बैठा-बैठा ही रात बिताऊंगा। यह अवग्रह-प्रतिमा भी जिनकल्पी या अभिग्रह विशेष के धारी साधुओं के होती है (10) / आचारचूला-सूत्र ११–सत्तसत्तिक्कया पण्णत्ता। सात सप्तैकक कहे गये हैं (11) / विवेचन-आचारचूला की दूसरी चूलिका के उद्देशक-रहित अध्ययन, सात हैं / संस्कृतटीका के अनुसार उनके नाम इस प्रकार हैं 1. स्थान सप्तकक, 2. नैषेधिकी सप्तकक, 3. उच्चार-प्रस्रवणविधि-सप्तकक, 4. शब्द सप्तकक, 5. रूपसप्तकक, 6. परक्रिया सप्तकक, 7 अन्योन्य-क्रिया सप्तैकक / यतः अध्ययन सात हैं और उद्देशकों से रहित हैं, अत: 'सप्तकक' नाम से वे व्यवहृत किये जाते हैं / इनका विशेष विवरण आचारचूला से जानना चाहिए / १२.-सत्त महज्झयणा पण्णत्ता। सात महान् अध्ययन कहे गये हैं (12) / विवेचन-सूत्रकृताङ्ग के दूसरे श्रु तस्कन्ध के अध्ययन पहले श्र तस्कन्ध के अध्ययनों की अपेक्षा बड़े हैं, अत: उन्हें महान् अध्ययन कहा गया है। संस्कृतटीका के अनुसार उनके नाम इस प्रकार हैं 1. पुण्डरीक-अध्ययन, 2. क्रियास्थान-अध्ययन, 3. अहार-परिज्ञा-अध्ययन, 4. प्रत्याख्यानक्रिया-अध्ययन, 5. अनाचार श्रुत-अध्ययन, 6. आर्द्र ककुमारीय-अध्ययन, 7. नालन्दीयअध्ययन / इनका विशेष विवरण सूत्रकृताङ्ग सूत्र से जानना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org