________________ सप्तम स्थान ] [ 576 १६–एतेसु णं सत्तसु प्रोवासंतरेसु सत्त तणुवाया पइट्ठिया। इन सातों अवकाशान्तरों में सात तनुवात प्रतिष्ठित हैं (16) / २०–एतेसु णं सत्तसु तणुवातेसु सत्त घणवाता पइटिया। इन सातों तनुवातों पर सात घनवात प्रतिष्ठित हैं (20) / २१---एतेसु णं सत्तसु घणवातेसु सत्त घणोदधी पतिट्टिया। इन सातों घनवातों पर सात घनोदधि प्रतिष्ठित हैं (21) / २२-एतेसु ण सत्तसु घणोदधोसु पिंडलग-पिहुल-संठाण-संठियानो सत्त पुडवीश्रो पण्णत्तानो, तं जहा-पढमा जाव सत्तमा। इन सातों घनोदधियों पर फूल की टोकरी के समान चौड़े संस्थान-वाली सात पृथिवियां कही गई हैं / प्रथमा यावत् सप्तमी (22) / २३–एतासि णं सत्तण्हं पुढवीणं सत्त णामधेज्जा पण्णता, तं जहा-घम्मा, वंसा, सेला, अंजणा, रिट्ठा, मघा, माधवती / इन सातों पृथिवियों के सात नाम कहे गये हैं / जैसे१. घर्मा, 2. वंशा, 3. शैला, 4. अंजना, 5. रिष्टा, 6. मघा, 7. माघवती (23) / २४–एतासि णं सत्तण्हं पुढवीणं सत्त गोता पण्णत्ता, तं जहा–रयणप्पभा, सक्करप्पभा, ' वालुअध्यभा, पंकप्पभा, धूमपमा, तमा, तमतमा। इन सातों पृथिवियों के सात गोत्र (अर्थ के अनुकूल नाम) कहे गये हैं / जैसे 1. रत्नप्रभा, 2. शर्कराप्रभा, 3. वालुकाप्रभा, 4. पंकप्रभा, 5. धूमप्रभा, 6. तमःप्रभा, 7. तमस्तमःप्रभा (24) / बायरवायुकायिक-सूत्र २५--सत्तविहा बायरवाउकाइया पण्णता, तं जहा-पाईणवाते, पडोणवाते, दाहिणवाते, उदोणवाते, उडवाते, अहेवाते, विदिसिवाते। बादर वायुकायिक जीव सात प्रकार के कहे गये हैं। जैसे 1. पूर्व दिशा सम्बन्धी वायु, 2. पश्चिम दिशा सम्बन्धी वायु 3. दक्षिण दिशा सम्बन्धी वायु, 5. उत्तर दिशा सम्बन्धी वायु, 5. ऊर्ध्व दिशा सम्बन्धी वायु, 6. अधोदिशा सम्बन्धी वायु और 7. विदिशा सम्बन्धी वायु जीव (25) / संस्थान-सूत्र २६–सत्त संठाणा पण्णत्ता, तं जहा-दोहे, रहस्से, बट्ट, तंसे, चउरंसे, पिहुले, परिमंडले। संस्थान (आकार) सात प्रकार के कहे गये हैं / जैसे 1. दीर्घसंस्थान, 2. ह्रस्वसंस्थान, 3. वृत्तसंस्थान (गोलाकार) 4. त्र्यत्र- (त्रिकोण-) संस्थान, 5. चतुरस्र-(चौकोण-) संस्थान, 6. पृथुल-(स्थूल-) संस्थान 7. परिमण्डल (अण्डे या नारंगी के समान) संस्थान (26) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org