________________ 564] [ स्थानाङ्गसूत्र ११५–सिद्धिगती णं उक्कोसेणं छम्मासा विरहिता उववातेणं। सिद्धगति उत्कर्ष से छह मास तक सिद्ध जीव के उपपात से रहित रहती है (115) / आयुर्बन्ध-सूत्र ११६-छविधे पाउयबंधे पण्णत्ते, तं जहा-जातिणामणिवत्ताउए, गतिणामणिधत्ताउए, ठितिणामणिधत्ताउए, प्रोगाहणाणामणिधत्ताउए, पएसणामणिधत्ताउए, अणुमागणामणिधत्ताउए। आयुष्य का बन्ध छह प्रकार का कहा गया है / जैसे१. जातिनाम निधत्तायु-आयुकर्म के बन्ध के साथ जातिनाम कर्म का नियम से बंधना / 2. गतिनामनिधत्तायु-पायुकर्म के बन्ध के साथ गतिनाम कर्म का नियम से बंधना। 3. स्थिति नाम निधत्तायु-आयु कर्म के बन्ध के साथ स्थिति का नियम से बंधना। 4. अवगाहनानाम निधत्तायु-पायुकर्म के बन्ध के साथ शरीर नामकर्म का नियम से बंधना। 5. प्रदेशनाम निधत्तायु-प्रायु कर्म के बन्ध के साथ प्रदेशों का नियम से बंधना। 6. अनुभागनाम निधत्तायु--पायुकर्म के बन्ध के साथ अनुभाग का नियम से बंधना (116) / विवेचन-कर्मसिद्धान्त का यह नियम है कि जब किसी भी प्रकृति का बन्ध होगा, उसी समय उसकी स्थिति, अनुभाग और प्रदेशों का भी बन्ध होगा / सूत्रोक्त छह प्रकार में से तीसरा, पाँचवाँ और छठा प्रकार इसी बात का सूचक है / तथा अयुकर्म के बन्ध के साथ ही तज्जातीय जाति नाम कर्म का, गतिनाम कर्म का और शरीरनाम कर्म का नियम से बन्ध होता है। इसी नियम की सूचना प्रथम, द्वितीय और चतुर्थ प्रकार से मिलती है। इसको सरल शब्दों में इस प्रकार का जानना चाहिए कोई जीव किसी समय देवायु कर्म का बन्ध कर रहा है, तो उसी समय आयु के साथ ही पंचेन्द्रिय जातिनाम कर्म का, देवगतिनाम कर्म का और वैक्रियशरीर नामकर्म का भी नियम से बन्ध होता है / तथा देवायु के बन्ध के साथ ही बंधने वाले पंचेन्द्रिय जातिनाम कर्म देवगति नामकर्म और वैक्रियशरीर नामकर्म का स्थितिबन्ध, अनुभागबन्ध और प्रदेशबन्ध भी करता है। प्रागे कहे जाने वाले दो सूत्र उक्त नियम के ही समर्थक हैं। ११७–णेरइयाणं छविहे पाउयबंधे पण्णत्ते, त जहा–जातिणामणिहत्ताउए, (गतिणामणिहत्ताउए, ठितिणामणिहत्ताउए, प्रोगाहणाणामणिहत्ताउए, पएसणामणिहत्ताउए), अणुभागणामणिहत्ताउए। नारकी जीवों का आयुष्क बन्ध छह प्रकार का कहा गया है / जैसे१. जातिनामनिधत्तायु-नारकायुष्क के बन्ध के साथ पंचेन्द्रियजातिनामकर्म का नियम से बंधना। 2. गतिनामनिधत्तायु-नारकायुष्क के बन्ध के साथ नरकगति का नियम से बंधना। 3. स्थितिनामनिधत्तायु-नारकायुष्क के बन्ध के साथ स्थिति का नियम से बंधना / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org