________________ 544] | स्थानाङ्गसूत्र 5. ज्ञात-भगवान महावीर के वंशज / 6. कौरव-कुरुवंश में उत्पन्न शान्तिनाथ तीर्थंकर के वंशज / इन छहों कुलार्यों का सम्बन्ध क्षत्रियों से रहा है। लोकस्थिति-सूत्र ३६–छविहा लोगट्टिती पण्णत्ता, तं जहा--पागासपतिट्टिते वाए, वातपतिट्टिते उदही, उदधिपतिट्टिता पुढवी, पुढविपतिट्ठिता तसा थावरा पाणा, अजीवा जीवपतिट्टिता, जीवा कम्मपतिद्विता। लोक की स्थिति छह प्रकार की कही गई है / जैसे१. वात (तनु वायु) आकाश पर प्रतिष्ठित है / 2. उदधि (धनोदधि) तनु वात पर प्रतिष्ठित है / 3. पृथिवी घनोदधि पर प्रतिष्ठित है / 4. स-स्थावर प्राणी पृथिवी पर प्रतिष्ठित हैं। 5. अजीव जीव पर प्रतिष्ठत है / 6. जीव कर्मों पर प्रतिष्ठित हैं (36) / दिशा-सूत्र ३७--छदिसामों पण्णत्ताप्रो, तं जहा–पाईणा, पडीणा, दाहिणा, उदीणा, उड्ढा, अधा। दिशाएँ छह कही गई हैं / जैसे 1. प्राची (पूर्व ) 2. प्रतीची (पश्चिम) 3. दक्षिण, 4. उत्तर, 5 ऊर्ध्व और 6. अधोदिशा (37) / ___ ३८-हिं दिसाहि जोवाणं गती पवत्तति, तं जहा–पाईणाए, (पडोणाए, दाहिणाए, उदीणाए. उड्ढाए), अधाए। छहों दिशाओं में जीवों की गति होती है अर्थात् मरकर जीव छहों दिशाओं में जाकर उत्पन्न होते हैं / जैसे-- 1. पूर्व दिशा में, 2. पश्चिम दिशा में, 3. दक्षिण दिशा में, 4. उत्तर दिशा में, 5. ऊर्ध्व दिशा में और 6. अधोदिशा में (38) / ३६-(छहिं दिसाहि जीवाणं)-प्रागई वक्कंती प्राहारे वुड्ढी णिवुड्ढी विगुब्वणा गतिपरियाए समुग्धाते कालसंजोगे दंसणाभिगमे जाणाभिगमे जोवाभिगमे अजीवाभिगमे (पण्णत्ते, त जहा---पाईणाए, पडीणाए, दाहिणाए, उदीणाए, उड्ढाए प्रधाए)। छहों दिशाओं में जीवों की प्रागति, अवक्रान्ति, आहार, वृद्धि, निवृद्धि, विकरण, गतिपर्याय समुद्धात, कालसंयोग, दर्शनाभिगम, ज्ञानाभिगम, जीवाभिगम, और अजीवाभिगम कहा गया है। जैसे 1. पूर्वदिशा में, 2. पश्चिमदिशा में, 3. दक्षिणदिशा में, 4. उत्तरदिशा में, 5. ऊर्ध्वदिशा में और 6. अधोदिशा में। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org