________________ 550 ] [स्थानाङ्गसूत्र 1. क्षिप्र-ईहामति--क्षिप्रावग्रह से गहीत वस्तु की विशेष जिज्ञासावाली मति / 2. बहु-ईहामति-बहु-अवग्रह से गृहीत वस्तु को विशेष जिज्ञासावाली मति / 3. बहुविध-ईहामति-बहुविध अवग्रह से गृहीत वस्तु को विशेष जिज्ञासावाली मति / 4. ध व-ईहामति--ध्र वावग्रह से गृहीत वस्तु की विशेष जिज्ञासावाली मति / 5. अनिश्रित-ईहामति-अनिश्रितावग्रह से गृहीत वस्तु की विशेष जिज्ञासावाली मति / 6. असंदिग्ध-ईहामति-असन्दिग्धावग्रह से गृहीत वस्तु की विशेष जिज्ञासावाली मति(६२)। ६३-छविधा अवायमती पण्णत्ता, त जहा-खिप्पमवेति, (बहुमवेति, बहुविधमवेति, धुवमवेति, प्रणिस्सियमवेति), असंदिद्धमवेति / अवाय-मति छह प्रकार की कही गई है। जैसे-- 1. क्षिप्रावाय-मति--क्षिप्र ईहा के विषयभूत पदार्थ का निश्चय करने वाली मति / 2. बहु-अवायमति-बहु-ईहा के विषयभूत पदार्थ का निश्चय करने वाली मति / 3. बहुविध-अवायमति बहुविध ईहा के विषयभूत पदार्थ का निश्चय करने वाली मति / 4. ध्र व-अवायमति-भ्र व ईहा के विषयभूत पदार्थ का निश्चय करने वाली मति / 5. अनिश्रित-अवायमति—अनिश्रित ईहा के विषयभूत पदार्थ का निश्चय करने वाली मति, 6. असन्दिग्ध-अवायमति- असन्दिग्ध ईहा के विषयभूत पदार्थ का निश्चय करने वाली मति (63) / ६४–छविहा धारणा [मती?] पक्षणता, त जहा-यहं धरेति, बहविहं धरेति, पोराणं धरेति, दुद्धरं धरेति, अणिस्सितं धरेति, प्रसंदिद्ध धरेति / धारण (कालान्तर में याद रखने वाली) मति छह प्रकार की कही गई है / जैसे--- 1. बहु-धारणामति-बहुअवाय से निर्णीत पदार्थ की धारणा रखने वाली मति / 2. बहुविध-धारणामति बहुविध अवाय से निर्णीत पदार्थ की धारणा रखने वाली मति / 3. पुराण-धारणामति--पुराने पदार्थ की धारणा रखने वाली मति / 4. दुर्धर-धारणामति–दुर्धर-गहन पदार्थ को धारणा रखने वाली मति / 5. अनिश्रित-धारणामति–अनिश्रित अवाय से निर्णीत पदार्थ की धारणा रखने वाली मति / 6. असंदिध-धारणामति-असंदिग्ध अवाय से निर्णीत पदार्थ की धारणा रखने वाली मति (64) / तपः-सूत्र ६५-छविहे बाहिरए तवे पण्णत्ते, तं जहा- अणसणं, प्रोमोदरिया, भिक्खायरिया, रसपरिच्चाए, कायकिलेसो, पडिसंलोणता / बाह्य तप छह प्रकार का कहा गया है / जैसे१. अनशन, 2. अवमोदरिका, 3. भिक्षाचर्या, 4. रसपरित्याग, 5. कायक्लेश, 6. प्रतिसंलीनता (65) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org