________________ 552] [ स्थानाङ्गसूत्र गोचर-चर्या छह प्रकार की कही गई है / जैसे१. पेटा-गाँव के चार विभाग करके गोचरी करना। 2. अर्धपेटा— गाँव के दो विभाग करके गोचरी करना / 3. गोमूत्रिका-घरों की आमने-सामने वाली दो पंक्तियों में इधर से उधर आते-जाते गोचरी करना। 4. पतंगवीथिका--पतंगा की उड़ान के समान विना क्रम के एक घर से गोचरी लेकर एकदम दूरवर्ती घर से गोचरी लेना।। 5. शम्बूकावर्ता-शंख के प्रावर्त (गोलाकार) के समान घरों का क्रम बनाकर गोचरी लेना। 6. गत्वा-प्रत्यागता---प्रथम पंक्ति के घरों में क्रम से प्राद्योपान्त गोचरी करके द्वितीय __ पंक्ति के घरों में क्रमश: गोचरी करते हुए वापिस पाना (66) / महानरक-मूत्र ७०-जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वस्स दाहिणे णं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए छ अक्क्कंतमहाणिरया पण्णत्ता, त जहा-लोले, लोलुए, उद्दड्ढे, णिद्दड्ढे, जरए, पज्जरए। जम्बूद्वीपनामक द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण भाग में इस रत्नप्रभा पृथ्वी में छह अपक्रान्त (प्रतिनिकृष्ट) महानरक कहे गये हैं / जैसे 1. लोल, 2. लोलुप, 3. उद्दग्ध, 4. निर्दग्ध, 5. जरक, 6. प्रजरक (70) / ७१-चउत्थीए णं पंकप्पभाए पुढवीए छ प्रवक्कंतमहाणिरया पण्णत्ता, तं जहा---प्रारे, वारे, मारे, रोरे, रोरुए, खाडखडे / चौथी पंकप्रभा पृथ्वी में छह अपक्रान्त महानरक कहे गये हैं / जैसे 1. आर, 2. वार, 3. मार, 4. रौर, 5. रोरुक, 6. खाडखड (71) / विमान-प्रस्तट-सूत्र ७२-बंभलोगे णं कप्पे छ विमाण-पत्थडा पण्णत्ता, तं जहा-अरए, विरए, जीरए, हिम्मले, वितिमिरे, विसुद्ध / ब्रह्मलोक कल्प में छह विमान प्रस्तट कहे गये हैं। जैसे 1. अरजस्, 2. विरजस्, 3. नीरजस, 4. निर्मल, 5. वितिमिर, 6. विशुद्ध / नक्षत्र-सूत्र ७३-चंदस्स णं जोतिसिदस्स जोतिसरण्णो छ णक्खत्ता पुन्वंभागा समखेत्ता तीसतिमुहुत्ता पण्णत्ता, तं जहा-पुन्वाभद्दवया, कत्तिया, महा. पुवफग्गुणी, मूलो, पुवासाढा / ज्योतिषराज, ज्योतिषेन्द्र चन्द्र के पूर्वभागी, समक्षेत्री और तीस मुहूर्त तक भोग करने वाले छह नक्षत्र कहे गये हैं / जैसे 1 पूर्वभाद्रपद, 2. कृत्तिका, 3. मघा, 4 पूर्वफाल्गुनी, 5. मूल, 6. पूर्वाषाढा (73) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org