________________ 540 ] [ स्थानाङ्गसूत्र विक्रियाऋद्धि के अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, वशित्व, ईशित्व, अप्रतिघात, अन्तर्धान, कामरूपित्व आदि अनेक भेद बताये गये हैं। तपऋद्धि के उग्र, दीप्त, तप्त, महाघोर, तपोधोर, पराक्रमघोर और ब्रह्मचर्य ये सात भेद बताये गये हैं। बलऋद्धि के मनोबली, वचनबली और कायबली ये तीन भेद हैं। औषधऋद्धि के पाठ भेद हैं—ामर्श, रवेल (श्लेष्म) जल्ल, मल, विट, सवौषिध, पास्यनिविष, दृष्टिनिर्विष / रसऋद्धि के छह भेद हैं--क्षीरस्रवी, मधुस्रवी, सपि:स्रवी, अमृतस्रवी, आस्यनिर्विष और दृष्टिनिविष / क्षेत्रऋद्धि दो भेद हैं-अक्षीण महानस और अक्षीण महालय / उक्त सभी ऋद्धियों का चामत्कारिक विस्तृत वर्णन तिलोयपण्णत्ती धवलाटीका और तत्वार्थराजवातिक में किया गया है। विशेषावश्यकभाष्य में 28 ऋद्धियों का वर्णन किया गया है। कालचक्र-सूत्र २३–छविहा प्रोसप्पिणी पण्णत्ता, त जहा-सुसम-सुसमा, (सुसमा, सुसम दूसमा, दूसमसुसमा, दूसमा), दूसम-दूसमा / अवसर्पिणी छह प्रकार की कही गई है / जैसे-~१. सुषम-सुषमा, 2. सुषमा, 3. सुषम-दुषमा, 4. दुःषम-सुषमा, 5. दुषमा, 6. दुःषम दुःषमा (23) / २४---छव्विहा उस्सप्पिणी पण्णत्ता, तं जहा-दुस्सम-दुस्समा, दुस्समा, (दुस्सम-सुसमा, सुसमदुस्समा, सुसमा, सुसम-सुसमा। उत्सर्पिणी छह प्रकार की कही गई है / जैसे१. दुःषम-दुःषमा, 2. दुःषमा, 3. दुःषम-सुषमा, 4. सुषम-दुःषमा, 5. सुषमा, 6. सुषम सुषमा (24) / २५-जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीए सुसम-सुसमाए समाए मणुया छ धणुसहस्साई उड्ढमुच्चत्तेणं हुत्था, छच्च अद्धपलिप्रोबमाई परमाउं पालयिस्था। जम्बुद्वीप नामक द्वीप में भरत-ऐरवत क्षेत्र की अतीत उत्सपिणी के सुषम-सुषमा काल में मनुष्यों की ऊँचाई छह हजार धनुष की थी और उनकी उत्कृष्ट आयु छह अर्ध पल्योपम अर्थात् तीन पल्योपम की थी (25) / २६--जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु इमोसे प्रोसप्पिणीए सुसम-सुसमाए समाए (मणुया छ धणुसहस्साई उड्ढमुच्चत्तेणं पण्णत्ता, छच्च अद्धपलिग्रोवमाइं परमाउं पालयित्था)। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में भरत-ऐरवत क्षेत्र की इसी अवसर्पिणी के सुषम-सुषमा काल में मनुष्यों की ऊँचाई छह हजार धनुष की थी और उनकी छह अर्धपल्योपम की उत्कृष्ट आयु थी (26) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org