________________ षष्ठ स्थान [ 537 3. घ्राणेन्द्रिय का अर्थ-गन्ध, 4. रसनेन्द्रिय का अर्थ-रस, 5. स्पर्शनेन्द्रिय का अर्थ-स्पर्श 6. नोइन्द्रिय (मन) का अर्थ-श्रु त (14) / विवेचन–पाँच इन्द्रियों के विषय तो नियत एवं सर्व-विदित हैं। किन्तु मन का विषय नियत नहीं है / वह सभी इन्द्रियों के द्वारा गृहीत विषय का चिन्तन करता है, अतः सर्वार्थ-ग्राही है / तत्त्वार्थसूत्र में भी उसका विषय श्रत कहा गया है। और आचार्य अकलंक देव ने उसका अर्थ श्र तज्ञान का विषयभूत पदार्थ किया है।' श्री अभयदेव सूरि ने लिखा है कि श्रोत्रेन्द्रिय के द्वारा मनोज्ञ शब्द सुनने से जो सुख होता है, वह तो श्रोत्रेन्द्रिय-जनित है / किन्तु इष्ट-चिन्तन से सुख होता है, वह नोइन्द्रियजनित है। संवर-असंवर-सूत्र १५–छबिहे संवरे पण्णते, तं जहा-सोति दियसंबरे, (क्खिदियसंबरे, घाणिदियसंवरे, जिभिदियसंवरे,) फासिदियसंवरे, गोइंदियसंवरे / संवर छह प्रकार का कहा गया है। जैसे१. श्रोत्रेन्द्रिय-संवर, 2. चक्षुरिन्द्रिय-संवर, 3. घ्राणेन्द्रिय-संवर, 4. रसनेन्द्रिय-संवर, 5. स्पर्शनेन्द्रिय-संवर, 6. नोइन्द्रिय-संवर / (15) १६--छविहे असंवरे पण्णते, तं जहा-सोतिदिय असंवरे, (चक्खिदियप्रसंवरे, घाणिदियअसंवरे, जिभिदियअसंवरे), फासिदियश्नसंवरे, णोइंदियनसंवरे / असंवर छह प्रकार का कहा गया है / जैसे१. श्रोत्रेन्द्रिय-असंवर, 2. चक्षुरिन्द्रिय-असंवर, 3. घ्राणेन्द्रिय-असंवर, 4. रसनेन्द्रिय-असंवर, 5. स्पर्शनेन्द्रिय असंवर, 6. नोइन्द्रिय-संवर / (16) सात-असात-सूत्र १७-छविहे साते पण्णते, तं जहा-सोतिदियसाते, (चक्खिदियसाते, घाणिदियसाते, जिभिदियसाते, फासिदियसाते), णोइंदियसाते / सात (सुख) छह प्रकार का कहा गया है। जैसे१. श्रोत्रेन्द्रिय-सात, 2. चक्षुरिन्द्रिय-सात, 3. घ्राणेन्द्रिय-सात, 4. रसनेन्द्रिय-सात, 5. स्पर्शनेन्द्रिय-सात 6. नोइन्द्रिय-सात / (17) १८-छविहे असाते पण्णत्ते, तं जहा-सोतिदिधप्रसाते, (चक्खिदियप्रसाते, धाणिदियप्रसाते, जिभिदियअसाते, फासिदिय प्रसाते), णोइंदियप्रसाते / 1. श्रुतज्ञानविषयोऽर्थः श्रुतम् / विषयोऽनिन्द्रियस्य ।"अथवा श्र तज्ञानं श्रुतम् / तदनिन्द्रियस्यार्थः प्रयोजनमिति यावत्, तत्पूर्वकत्वात्तस्य / (तत्त्वार्थवात्तिक, सू० 21 भाषा) 2. श्रोत्रेन्द्रि बद्वारेण मनोजशब्द-श्रवणतो यत्सात-सुखं तमलोवेन्द्रियसातम् / तथा यदिष्टचिन्तनवतस्तन्नोइन्द्रियसात मिति / सूत्रकृताङ्गटीका पत्र 338A) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org