________________ 508] [ स्थानाङ्गसूत्र वह संक्षेप से पांच प्रकार का कहा गया है / जैसे-- 1. द्रव्य की अपेक्षा, 2. क्षेत्र की अपेक्षा 3. काल की अपेक्षा, 4. भाव की अपेक्षा, 5. गुण की अपेक्षा। 1. द्रव्य की अपेक्षा-आकाशास्तिकाय एक द्रव्य है। 2. क्षेत्र की अपेक्षा-आकाशास्तिकाय लोक-अलोक प्रमाण सर्वव्यापक है / 3. काल की अपेक्षा-आकाशास्तिकाय कभी नहीं था, ऐसा नहीं है; कभी नहीं है, ऐसा नहीं है; कभी नहीं होगा, ऐसा नहीं है / वह भूतकाल में था, वर्तमान में है और भविष्य में रहेगा। अत: वह ध्र व, निचित, शाश्वत, अक्षय, अव्यय, अवस्थित और नित्य है। भाव की अपेक्षा-आकाशास्तिकाय अवर्ण, अगन्ध, अरस और अस्पर्श है। गुण की अपेक्षा-अाकाशास्तिकाय अवगाहन गुणवाला है। १७३–जीवस्थिकाए णं अवण्णे अगंधे अरसे अफासे अरूबी जीवे सासए प्रवट्टिए लोगदवे / से समासमो पंचविधे पण्णत्त, तं जहा-दव्वानो, खेत्तयो, कालो, भावप्रो, गुणनो। दव्वनो णं जीवस्थिकाए अणंताई दवाई। . खेत्तयो लोगपमाणमेत्त। कालो ण कयाइ णासी, ण कयाइ ण भवति, ण कयाइ ण भविस्सइत्ति-भुवि च भवति य भविस्सति य, धुवे णिइए सासते अक्खए अन्वए अवट्टिते णिच्चे / भावप्रो अवण्णे अगंधे अरसे अफासे। गुणनो उवयोगगुणे। जीवास्तिकाय अवर्ण अगन्ध, अरस, अस्पर्श, अरूपी, जीव, शाश्वत, अवस्थित और लोक का एक अंशभूत द्रव्य है। वह संक्षेप से पांच प्रकार का कहा गया है। जैसे१. द्रव्य की अपेक्षा, 2. क्षेत्र की अपेक्षा, 3. काल की अपेक्षा, 4. भाव को अपेक्षा, 5. गुण की अपेक्षा। 1. द्रव्य की अपेक्षा—जीवास्तिकाय अनन्त द्रव्य हैं। 2. क्षेत्र की अपेक्षा-जीवास्तिकाय लोकप्रमाण हैं, अर्थात् लोकाकाश के असंख्यात प्रदेशों के बराबर प्रदेशों वाला है। 3. काल की अपेक्षा--जीवास्तिकाय कभी नहीं था, ऐसा नहीं है; कभी नहीं है, ऐसा नहीं है; कभी नहीं होगा, ऐसा नहीं है। वह भूतकाल में था, वर्तमानकाल में है और भविष्यकाल में रहेगा / अत: वह ध्र व, निचित, शाश्वत, अक्षय, अव्यय, अवस्थित और नित्य है। 4. भाव की अपेक्षा-जीवास्तिकाय अवर्ण, अगन्ध, अरस और अस्पर्श है। 5. गुण को अपेक्षा-जीवास्तिकाय उपयोग गुणवाला है / (173) १७४---पोग्गलस्थिकाए पंचवण्णे पंचरसे दुगंधे अटफासे रूबी अजीवे सासते प्रवद्धिते लोगदब्वे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org