________________ पंचम स्थान तृतीय उद्देश अतिकाय-सूत्र ___१६९-पंच अस्थिकाया पण्णता, तं जहा-धम्मस्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, पागासत्थिकाए, जीवस्थिकाए, पोग्गलस्थिकाए। पांच द्रव्य अस्तिकाय कहे गये हैं। जैसे१. धर्मास्तिकाय, 2. अधर्मास्तिकाय, 3. अाकाशास्तिकाय, 4. जीवास्तिकाय, 5. पुद्गलास्तिकाय / (166) १७०-धम्मस्थिकाए अवण्णे अगंधे अरसे अफासे अरूवी अजीवे सासए अवट्ठिए लोगदम्वे / से समासो पंचविधे पण्णत्ते, तं जहा-दवो, खेत्तो, कालों, भावओ, गुणओ। दव्वनो णं धम्मस्थिकाए एग दव्वं / खेत्तो लोगपमाणमेत्ते। कालो ण कयाइ णासी, ण कयाइ ण भवति. ण कयाइ ण भविस्सइत्ति-भुवि च भवति य भविस्सति य, धुवे णिइए सासते अक्खए अव्वए अद्विते णिच्चे / भावप्रो प्रवणे अगंधे अरसे अफासे / गुणो गमणगुणे। धर्मास्तिकाय अवर्ण, अगन्ध, अरस, अस्पर्श, अरूपी, अजीव, शाश्वत, अवस्थित और लोक का अंशभूत द्रव्य है अर्थात् पंचास्तिकायमय लोक का एक अंश है। वह संक्षेप से पांच प्रकार का कहा गया है / जैसे१. द्रव्य की अपेक्षा, 2. क्षेत्र की अपेक्षा 3. काल की अपेक्षा, 4. भाव की अपेक्षा, 5. गुण की अपेक्षा। 1. द्रव्य की अपेक्षा-धर्मास्तिकाय एक द्रव्य है। 2. क्षेत्र की अपेक्षा-धर्मास्तिकाय लोकप्रमाण है। 3. काल की अपेक्षा—धर्मास्तिकाय कभी नहीं था, ऐसा नहीं है, कभी नहीं है, ऐसा नहीं है, कभी नहीं होगा, ऐसा नहीं है। वह भूतकाल में था, वर्तमान में है और भविष्य में रहेगा। अतः वह ध्र व, निचित, शाश्वत, अक्षय, अव्यय, अवस्थित और नित्य है। 4. भाव की अपेक्षा धर्मास्तिकाय-अवर्ण, अगन्ध, अरस और अस्पर्श है। अर्थात् उसमें वर्ण गंध रस और स्पर्श नहीं हैं।। 5. गुण की अपेक्षा-धर्मास्तिकाय गमनगुणवाला है अर्थात् स्वयं गमन करते हुए जीवों और पुद्गलों के गमन करने में सहायक है। (170) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org