________________ चतुर्थ स्थान-तृतीय उद्देश ] [ 375 3. कुलसम्पन्न भी, जयसम्पन्न भी-कोई घोड़ा कुलसम्पन्न भी होता है और जयसम्पन्न भी होता है। 4. न कुलसम्पन्न, न जयसम्पन्न-कोई घोड़ा न कुलसम्पन्न होता है और न जयसम्पन्न ही होता है। इसी प्रकार पुरुष भो चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे-- 1. कुलसम्पन्न, न जयसम्पन्न-कोई पुरुष कुलसम्पन्न होता है, किन्तु जयसम्पन्न नहीं होता। 2. जयसम्पन्न, न कुलसम्पन्न—कोई पुरुष जयसम्पन्न होता है, किन्तु कुलसम्पन्न नहीं होता। 3. कुलसम्पन्न भी जयसम्पन्न भी—कोई पुरुष कुलसम्पन्न भी होता है और जयसम्पन्न भी होता है। 4. न कुलसम्पन्न, न जयसम्पन्न-कोई पुरुष न कुलसम्पन्न ही होता है और न जयसम्पन्न ही होता है (476) / बल-सूत्र ४७७–चत्तारि पकंथगा पण्णत्ता, तं जहा-बलसंपण्णे गाममेगे णो रूवसंपण्णे, रूवसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे, एगे बलसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो बलसंपण्णे णो रूवसंपण्णे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तजहा-बलसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपणे, रूवसंपण्णे णाममेगे णो बलसंपण्णे, एगे बलसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो बलसंपण्णे णो रूवसंपण्णे / घोड़े चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. बलसम्पन्न, न रूपसम्पन्न-कोई घोड़ा बलसम्पन्न होता है, किन्तु रूपसम्पन्न नहीं होता। 2. रूपसम्पन्न, न बलसम्पन्न-कोई घोड़ा रूपसम्पन्न होता है, किन्तु बलसम्पन्न नहीं होता। 3. बलसम्पन्न भी, रूपसम्पन्न भी—कोई घोड़ा बलसम्पन्न भी होता है और रूपसम्पन्न भी होता है। 4. न बलसम्पन्न, न रूपसम्पन्न-कोई घोड़ा न बलसम्पन्न होता है और न रूपसम्पन्न ही होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. बलसम्पन्न, न रूपसम्पन्न--कोई पुरुष बलसम्पन्न होता है, किन्तु रूपसम्पन्न नहीं होता। 2. रूपसम्पन्न, न बलसम्पन्न-कोई पुरुष रूपसम्पन्न होता है, किन्तु बलसम्पन्न नहीं होता। 3. बलसम्पन्न भी, रूपसम्पन्न भी कोई पुरुष बलसम्पन्न भी होता है और रूपसम्पन्न भी होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org