________________ चतुर्थ स्थान--चतुर्थ उद्देश } [ 425 3. तुच्छ और पूर्णावभासी-कोई पुरुष सम्पत्ति-श्रु त आदि से अपूर्ण होता है, किन्तु प्राप्त यत्किंचित् सम्पत्ति-श्रु तादि का उपयोग करने से पूर्ण सा दिखता है। 4. तुच्छ और तुच्छावभासी-कोई पुरुष सम्पत्ति-श्रुत आदि से अपूर्ण होता है और प्राप्त ___ का उपयोग न करने से अपूर्ण ही दिखता है / (561) / ५६२–चत्तारि कुभा पण्णत्ता, त जहा-पुणे णाममेगे पुण्णरूवे, पुण्णे णाममेगे तुच्छरूवे, तुच्छे णाममेगे पुण्णरूवे, तुच्छे णाममेग तुच्छरूबे / एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा-पुण्णे णाममेगे पुण्णरूवे, पुण्णे णाममेग तुच्छरूवे, तुच्छे णाममेग पुण्णरूवे, तुच्छे णाममेग तुच्छरूवे / पुनः कुम्भ चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. पूर्ण और पूर्णरूप--कोई कुम्भ जल आदि से पूर्ण होता है और उसका रूप (आकार) भी पूर्ण होता है। 2. पूर्ण और तुच्छरूप-कोई कुम्भ जल अादि से पूर्ण होता है, किन्तु उसका रूप पूर्ण नहीं होता है। 3. तुच्छ और पूर्णरूप---कोई कुम्भ जल आदि से अपूर्ण होता है, किन्तु उसका रूप पूर्ण होता है। 4. तुच्छ और तुच्छरूप—कोई कुम्भ जल आदि से भी अपूर्ण होता है और उसका रूप भी अपूर्ण होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. पूर्ण और पूर्णरूप—कोई पुरुष धन-श्रुत आदि से भी पूर्ण होता है और वेषभूषादि रूप से भी पूर्ण होता है। 2. पूर्ण और तुच्छरूप-कोई पुरुष धन-श्रुत आदि से पूर्ण होता है, किन्तु वेषभूषादि रूप से अपूर्ण होता है। 3. तुच्छ और पूर्णरूप--कोई पुरुष धन-श्रु त अादि से भी अपूर्ण होता है किन्तु वेष-भूषादि रूप से पूर्ण होता है। 4. तुच्छ और तुच्छरूप-कोई पुरुष धन-श्रु तादि से भी अपूर्ण होता है और वेष-भूषादि रूप से भी अपूर्ण होता है। ५६३-चत्तारि कुभा पण्णत्ता, त जहा---पुण्णेवि एगे पियट्ठ, पुण्णेवि एगे प्रवदले, तुच्छेवि एगे पिय?, तुच्छेवि एगे प्रबदले। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तजहा-पुण्णेवि एगे पिय?, पुग्णेवि एगे प्रवदले, तुच्छेवि एगे पिय?, तुच्छेवि एगे अवदले। पुनः कुम्भ चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. पूर्ण और प्रियार्थ-कोई कुम्भ जल आदि से पूर्ण होता है और सुवर्णादि-निर्मित होने __ के कारण प्रियार्थ (प्रीतिजनक) होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org