________________ पंचम स्थान-द्वितीय उद्देश ] [ 467 पंचेन्द्रिय जीवों का प्रारंभ-सभारंभ नहीं करने वाले को पांच प्रकार का संयम होता है / जैसे१. श्रोत्रेन्द्रिय-संयम, 2. चक्षुरिन्द्रिय-संयम, 3. घ्राणेन्द्रिय-संयम 4. रसनेन्द्रिय-संयम 5. स्पर्शनेन्द्रिय-संयम (क्योंकि वह पाँचों इन्द्रियों का व्याघात नहीं करता) (142) / १४३-चिदिया णं जीवा समारभमाणस्स पंचविधे असंजमे कज्जति, त जहा-सोतिदियअसंजमे, (चक्खिदियनसंजमे, घाणिदियनसंजमे, जिभिदिय प्रसंजमे), फासिदियअसंजमे। पंचेन्द्रिय जीवों का धात करने वाले को पाँच प्रकार का असंयम होता है जैसे१. श्रोत्रेन्द्रिय-असंयम, 2. चक्षुरिन्द्रिय-असंयम 3. घ्राणेन्द्रिय-असंयम 4. रसनेन्द्रिय असंयम, 5. स्पर्शनेन्द्रिय-असंयम (143) / १४४-सवपाणभूयजीवसत्ता गं असमारभमाणस्स पंचविहे संजमे कज्जति, त जहाएगिदियसंजमे, (बेइंदियसंजमे, तेइंदियसंजमे, चरिंदियसंजमे), पचिदियसंजमे / सर्व प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों का घात नहीं करने करने को पाँच प्रकार का संयम होता है। जैसे 1. एकेन्द्रिय-संयम, 2. द्वीन्द्रिय-संयम, 3. श्रीन्द्रिय-संयम, 4. चतुरिन्द्रिय-संयम, 5. पंचेन्द्रिय-संयम (144) / १४५-सव्वपाणभूयजीवसत्ता णं समारभमाणस्स पंचविहे असंजमे कज्जति, त जहाएगिदियश्रसंजमे, (बेइंदियप्रसंजमे, तेइंदिय प्रसंजमे, चरिदिय प्रसंजमे), पचिदियअसंजमे / सर्व प्राण, भूत, जीव और सत्वों का घात करने वाले को पाँच प्रकार का असंयम होता है / जैसे-- 1. एकेन्द्रिय-असंयम, 2. द्वीन्द्रिय असंयम, 3. त्रीन्द्रिय-असंयम, 8. चतुरिन्द्रिय-असंयम 5. पंचेन्द्रिय असंयम (145) / तृणवनस्पति-सूत्र १४६-पंचविहा तणवणस्सतिकाइया पण्णत्ता, त जहा-अग्गबीया, मूलबीया, पोरबीया, खंधबीया, बीयरहा। तणवनस्पतिकायिक जीव पाँच प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. अग्रबीज-जिनका अग्रभाग ही बीजरूप होता है जैसे-कोरंट आदि / 2. मूलबीज--जिनका मूल भाग ही बीज रूप होता है जैसे-कमलकंद आदि / 3. पर्वबीज-जिनका पर्व (पोर, गांठ) ही बीजरूप होता है / जैसे-गन्ना आदि / 4. स्कन्धबीज-जिसका स्कन्ध ही बीजरूप होता है / जैसे—सल्लकी आदि / 4. बीजरूप-बीज से उगने वाले-गेहूं, चना आदि (146) / आचार-सूत्र "147- पंचविहे पायारे पण्णत्ते, त जहा- णाणायारे, दंसणायारे, चरित्तायारे, तवायारे, वोरियायारे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org