________________ [ 501 पंचम स्थान-द्वितीय उद्देश ] १६२–बंभी णं अज्जा (पंच धणुसताई उड्डे उच्चत्तेणं होत्था)। प्रार्या ब्राह्मी पांच सौ धनुष ऊंची अवगाहना वाली थी (162) / १६३–(सुंदरी णं अज्जा पंच धणुसताई उट्ट उच्चत्तेणं होत्था)। आर्या सुन्दरी पांच सौ धनुष ऊंची अवगाहना वाली थीं (163) / विबोध-सूत्र १६४-पंचहि ठाणेहि सुत्ते विबुज्झेज्जा, तं जहा–सद्देणं, फासेणं, भोयणपरिणामेणं, णिहक्खएणं, सुविणदंसणेणं / पांच कारणों से सोता हुआ मनुष्य जाग जाता है। जैसे१. शब्द से किसी की आवाज को सुनकर / 2. स्पर्श से किसी का स्पर्श होने पर / 3. भोजन परिणाम से-भूख लगने से / 4. निद्राक्षय से पूरी:नींद सो लेने से / 5. स्वप्नदर्शन से-स्वप्न देखने से। निर्गन्थी-अवलंबन-सूत्र १६५---पंचहि ठाणेहि समणे णिग्गथे णिग्गथि गिण्हमाणे वा अवलंबमाणे वा णातिक्कमति, तं जहा 1. णिग्गथिं च णं अण्णयरे पसुजातिए वा पक्खिजातिए वा मोहातेज्जा, तत्थ णिग्गंथे णिग्गथि गिण्हमाणे वा अवलंबमाणे वा जातिक्कमति / 2. जिग्गंथे णिग्गंथि दुग्गसि वा विसमंसि वा पक्खलमणि वा पवडमाणि वा गिण्हमाणे वा / प्रवलंबमाणे वा जातिक्कमति / 3. णिग्गंथे णिग्गथि सेयंसि वा पंकसि वा पणगंसि वा उदगंसि वा उक्कसमाणि वा उबुज्ज माणि वा गिण्हमाणे वा अवलंबमाणे वा जातिक्कमति / 4. णिग्गंथे णिथि णावं पारुममाणे वा ओरोहमाणे वा णातिक्कमति / 5. खित्तचित्तं दित्तचित्तं जक्खाइट्ट उम्मायपत्तं उवसग्गपत्तं साहिगरणं सपायच्छित्तं जाव भत्तपाणपडियाइक्खियं अटुजायं वा णिग्गंथे णिथि गेण्हमाणे वा अवलंबमाणे वा जातिक्कमति / पांच कारणों से श्रमण निर्ग्रन्थ, निर्ग्रन्थी को पकड़े, या अवलम्बन दे तो भगवान् की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है / जैसे 1. कोई पशु जाति का या पक्षिजाति का प्राणी निर्ग्रन्थी को उपहत करे तो वहां निर्ग्रन्थी को ग्रहण करता या अवलम्बन (सहारा) देता हुआ निर्ग्रन्थ भगवान् की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org