________________ 466 ] [स्थानाङ्गसूत्र संवर पांच प्रकार का कहा गया है / जैसे१. श्रोत्रेन्द्रिय-संवर, 2. चक्षुरिन्द्रिय-संवर, 3. घ्राणेन्द्रिय-संवर, 4. रसनेन्द्रिय-संवर, 5. स्पर्शनेन्द्रिय-संवर (137) / १३८--पंचविधे प्रसंवरे पण्णते, त जहा-सोतिदियप्रसंवरे, (चक्खिदियअसंवरे, घाणिदियअसंवरे, निभिदियअसंवरे), फासिदियप्रसंवरे / असंवर पांच प्रकार का कहा गया है। जैसे१. श्रोत्रेन्द्रिय-असंवर, 2. चक्षुरिन्द्रिय-असंवर, 3. घ्राणेन्द्रिय-असंवर 4. रसनेन्द्रिय-असंवर, 5. स्पर्शनेन्द्रिय-असंवर (138) / संजम-असंजम-सूत्र १३६-पंचविधे संजमे पण्णत्ते, त जहा—सामाइयसंजमे, छेदोवट्ठावणियसंजमे, परिहारविसुद्धियसंजमे, सुहमसंपरागसंजमे, प्रहक्खायचरित्तसंजमे / संयम पांच प्रकार का कहा गया है / जैसे-- 1. सामयिक-संयम सर्व सावध कार्यों का त्याग करना। 2. छेदोपस्थानीय संयम-पंच महाव्रतों का पृथक्-पृथक् स्वीकार करना / 3. परिहारविशुद्धिक-संयम-तपस्या विशेष की साधना करना / 4. सूक्ष्मसांपरायसंयम-दशम गुणस्थान का संयम / 5. यथाख्यातचारित्रसंयम-ग्यारहवें गुणस्थान से लेकर उपरिम सभी गुणस्थानवी जीवों का वीतराग संयम (136) / 140 एगिदिया णं जीवा असमारभमाणस्स पंचविधे संजमे कज्जति, तं जहा–पुढविकाइयसंजमे, (आउकाइयसंजमे, तेउकाइयसंजमे, वाउकाइयसंजमे), वणस्सतिकाइयसंजमे।। एकेन्द्रियजीवों का प्रारंभ-समारंभ नहीं करने वाले जीव को पांच प्रकार का संयम होता है। जैसे 1. पृथिवीकायिक-संयम, 2. अप्कायिक-संयम, 3. तेजस्कायिक-संयम, 4. वायुकायिक-संयम, 5. बनस्पतिकायिक-संयम (140) / 141 एगिदिया णं जीवा समारभमाणस्स पंचविहे असंजमे कज्जति, त जहा-पुढविकाइयअसंजमे, (ग्राउकाइयप्रसंजमे, ते उकाइयअसंजमे, वाउकाइयअसंजमे), वणस्सतिकाइयनसंजमे। एकेन्द्रिय जीवों का प्रारंभ करने वाले को पांच प्रकार असंयम होता है जैसे 1. पृथिवीकायिक-असंयम, 2. अप्कायिक-असंयम, 3. तेजस्कायिक-असंयम, 4. वायुकायिक-असंयम, 5. वनस्पतिकायिक-असंयम (141) / १४२–पंचिदिया णं जीवा असमारभमाणस्स पंचविहे संजमे कज्जति, त जहा-सोतिदियसंजमे, (चक्खिदियसंजमे, घाणिदियसंजमे, जिभिदिय संजमे), फासिदियसंजमे / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org