________________ पंचम स्थान--प्रथम उद्देश] 1. भद्रा प्रतिमा, 2. सुभद्रा प्रतिमा, 4. सर्वतोभद्रा प्रतिमा, 5. भद्रोत्तर प्रतिमा (18) / इनका विवेचन दूसरे स्थान में किया जा चुका है / [ 451 3. महाभद्रा प्रतिमा, स्थावरकाय-सूत्र १६-पंच थावरकाया पण्णता, त जहा-इंदे थावरकाए, बंभे थावरकाए, सिप्पे थावरकाए, सम्मति थावरकाए, पायावच्चे थावरकाए। पांच स्थावरकाय कहे गये हैं। जैसे१. इन्द्रस्थावरकाय-पृथ्वीकाय, 2. ब्रह्मस्थावरकाय-अप्काय, 3. शिल्पस्थावरकायतेजसकाय, 4. सम्मतिस्थावरकाय-वायुकाय, 5. प्राजापत्यस्थावरकाय-वनस्पति काय (16) / २०-पंच थावरकायाधिपती पण्णत्ता, तं जहा-इंदे थावरकायाधिपती, जाव (बंभे थावर. कायाधिपती, सिप्पे थावरकायाधिपती, सम्मती थावरकायाधिपती), पागावच्चे थावरकायाधिपती। पांच स्थावरकायों के अधिपति कहे गये हैं। जैसे१. पृथ्वी-स्थावरकायाधिपति–इन्द्र / 2. अप्-स्थावरकायाधिपति—ब्रह्मा। तेजस-स्थावरकायाधिपति—शिल्प / 4. वायु-स्थावरकायाधिपति-सम्मति / 5. वनस्पति-स्थावरकायाधिपति-प्राजापत्य (20) / विवेचन—उक्त दो सूत्रों में स्थावरकाय और उनके अधिपति (स्वामी) बताये गये हैं। जिस प्रकार दिशाओं के अधिपति इन्द्र, अग्नि आदि हैं, नक्षत्रों के अधिपति अश्वि, यम आदि हैं, उसी प्रकार पांचों स्थावरकायों के अधिपति भी यहाँ पर (20 वें सूत्र में) बताये गये हैं और उनके सम्बन्ध से पृथ्वी आदि को भी इन्द्रस्थावरकाय आदि के नामों से उल्लेख किया गया है। अतिशेषज्ञान-दर्शन-सूत्र २१---पंचहि ठाणेहिं प्रोहिदसणे समुप्पज्जि उकामेथि तप्पढमयाए खंभाएज्जा, तं जहा१. अप्पभूतं वा पुढवि पासित्ता तप्पढमयाए खंभाएज्जा। 2, कुथुरासिभूतं वा पुढवि पासित्ता तप्पढमयाए खंभाएज्जा। 3. महतिमहालयं वा महोरगसरोरं पासित्ता तप्पढमयाए खंमाएज्जा। 4. देवं वा महिड्डियं जाव (महज्जुइयं महाणुभाग महायसं महाबलं) महासोक्खं पासित्ता तपढमयाए खंभाएज्जा। 5. पुरेसु वा पोराणाई उरालाई महतिमहालयाई महाणिहाणाइं पहोणसामियाइं पहोणसे उयाइं पहीणगुत्तागाराई उच्छिण्णसामियाई उच्छिग्णसे उयाई उच्छिष्णगुत्तागाराइं जाई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org