________________ 482] [स्थानाङ्गसूत्र गंगादि पांच ही महानदियों के उल्लेख से ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान् महावीर के समय में निर्ग्रन्थ और निर्गन्थियों का विहार उत्तर भारत में ही हो रहा था, क्योंकि दक्षिण भारत में बहने वाली नर्मदा, गोदावरी, ताप्ती आदि किसी भी महानदी का उल्लेख प्रस्तुत सूत्र में नहीं है। हां, महानदी और महार्णव पद को उपलक्षण मानकर अन्य महानदियों का ग्रहण करना चाहिए / प्रथम प्रावृष्-सूत्र ६६–णो कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा पढमपाउसंसि गामाणुगामं दूइज्जित्तए। पंचहि ठाणेहि कप्पइ. तं जहा-१. भयंसि वा, 2. दुबिभक्खंसि वा, 3. (पव्वहेज्ज वा णं कोई, 4. दोघंसि वा एज्जमाणंसि). महता वा, प्रणारिएहि / निर्ग्रन्थ और निम्र न्थियों को प्रथम प्रावृष् में ग्रामानुग्राम विहार करना नहीं कल्पता है / किन्तु पांच कारणों से विहार करना कल्पता है / जैसे 1. शरीर, उपकरण आदि के अपहरण का भय होने पर 2. दुर्भिक्ष होने पर 3. किसी के द्वारा व्यथित किये जाने पर, या ग्राम से निकाल दिये जाने पर / 4. बाढ़ प्राजाने पर 5. अनार्यों के द्वारा उपद्रव किये जाने पर / (66) वर्षावास-सूत्र १००-वासावासं पज्जोसविताणं णो कप्पइ णिग्गंथाण वा णिगंथीण वा / दुइज्जित्तए। पंचहि ठाणेहि कप्पड़, त जहा-१. णाणट्टयाए, 2. दंसणट्टयाए, 3. चरित्तद्वयाए, 4. प्रायरिय-उवज्झाया वा से बोसुभेज्जा, 5. पायरिय-उवज्झायाण वा बहिया वेगावच्चकरणयाए। वर्षावास में पर्युषणाकल्प करने वाले निर्ग्रन्थ और निर्गन्थियों को ग्रामानुग्राम विहार करना नहीं कल्पता है / किन्तु पांच कारणों से विहार करना कल्पता है / जैसे 1. विशेष ज्ञान की प्राप्ति के लिए। 2. दर्शन-प्रभावक शास्त्र का अर्थ पाने के लिए। 3. चारित्र की रक्षा के लिए। 4. आचार्य या उपाध्याय की मृत्यु हो जाने पर अथवा उनका कोई अति महत्त्व कार्य करने के लिए। 5. वर्षाक्षेत्र से बाहर रहने वाले प्राचार्य या उपाध्याय की वैयावृत्त्य करने के लिए / (100) विवेचन-वर्षाकाल में एक स्थान पर रहने को वर्षावास कहते हैं। यह तीन प्रकार का कहा गया है-जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट / 1. जघन्य वर्षावास-सांवत्सरिक प्रतिक्रमण के दिन से लेकर कात्तिको पूर्णमासी तक 70 दिन का होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org