________________ 460] [ स्थानाङ्ग सूत्र ११७-पंच किरियानो पण्णत्तानो, तं जहा-प्रारंभिया (पारिहिया, मायावत्तिया, प्रपच्चक्खाणकिरिया), मिच्छादसणवत्तिया। पुन: पांच क्रियाएं कही गई हैं। जैसे१. प्रारम्भिकी क्रिया, 2. पारिग्रहिकी क्रिया, 3. मायाप्रत्यया क्रिया, 4. अप्रत्याख्यान __ क्रिया, 5. मिथ्यादर्शन क्रिया (117) / ११८---णेरइयाणं पंच किरिया णिरंतरं जाव वेमाणियाणं / नारकी जीवों से लेकर निरन्तर वैमानिक तक सभी दण्डकों में ये पांच क्रियाएं जाननी चाहिए (118) / ११६-पंच किरियानो पण्णताओ, तं जहा-दिट्टिया, पुट्टिया, पाण्डुच्चिया, सामंतोवणिवाइया, साहत्थिया। पुनः पांच क्रियाएं कही गई हैं / जैसे१. दृष्टिजा क्रिया, 2. पृष्टिजाक्रिया, 3. प्रातीत्यिकी क्रिया, 4. सामन्तोपनिपातिकी क्रिया, 5. स्वाहस्तिकी क्रिया (116) / १२०–एवं णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं / नारकी जीवों से लेकर वैमानिक तक सभी दंडकों में ये पांच क्रियाएं जाननी चाहिए (120) / १२१--पंच किरियाओं, तं जहा–णेसत्थिया, प्राणवणिया, वेयारणिया, अणाभोगवत्तिया, प्रणवकंखवत्तिया। एवं जाव वेमाणियाणं / पुनः पांच क्रियाएं कही गई हैं। जैसे१. नैसृष्टि की क्रिया, 2. प्राज्ञापनिकी क्रिया, 3. वैदारणिका क्रिया, 4. अनाभोग प्रत्ययाक्रिया, 5. अनवकांक्षप्रत्यया क्रिया। नारकों से लेकर वैमानिकों तक सभी दण्डकों में ये पांच क्रियाएं जाननी चाहिए (121) / १२२-पंच किरियाप्रो पण्णत्तायो, तं जहा-पेज्जवत्तिया, दोसवत्तिया, पयोगकिरिया, समुदाणकिरिया, ईरियावहिया / एवं-मणुस्साणवि / सेसाणं णत्थि / पुनः पांच क्रियाएं कही गई हैं / जैसे१. प्रयःप्रत्यया क्रिया, 2. द्वषप्रत्यया क्रिया, 3. प्रयोगक्रिया, 4. समुदानक्रिया 5. ईर्या पथिकी क्रिया। ये पांचों क्रियाएं मनुष्यों में ही होती हैं / शेष दण्डकों में नहीं होती। (क्योंकि उनमें ईर्यापथिकी क्रिया संभव नहीं है, वह वीतरागी ग्यारहवें, बारहवें और तेरहवें गुणस्थान वाले मनुष्यों के ही होती है।) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org