________________ पंचम स्थान-प्रथम उद्देश | [ 475 2. हेतु को (सम्यक् ) नहीं देखता है। 3. हेतु को (सम्यक् ) नहीं समझता है-श्रद्धा नहीं करता है। .. 4. हेतु को (सम्यक् रूप से) प्राप्त नहीं करता है / 5 हेतु-पूर्वक अज्ञानमरण से मरता है (75) / ७६-पंच हेऊ पण्णत्ता, तं जहा–हेउणा ण जाणति, जाव (हेउणा ण पासति, हेण्णा प बुज्झति, हेउणा णाभिगच्छति), हेउणा प्रणाणमरणं मरति। पुनः हेतु पांच कहे गये हैं। जैसे१. हेतु से असम्यक् जानता है। 2. हेतु से असम्यक देखता है / 3. हेतु से असम्यक् समझता है, असम्यक् श्रद्धा करता है। 4. हेतु से असम्यक् प्राप्त करता है / 5. सहेतुक अज्ञानमरण से मरता है (76) / ७७–पंच हेऊ पण्णता, तं जहा-हेउं जाणइ, जाव (हेउं पासइ, हेउं बुझइ, हेडं अभिगच्छइ), हेउं छउमत्थमरणं मरति / पुनः पांच हेतु कहे गये हैं / जैसे१. हेतु को (सम्यक्) जानता है / 2. हेतु को (सम्यक् ) देखता है। 3. हेतु की (सम्यक् ) श्रद्धा करता है / 4. हेतु को (सम्यक्) प्राप्त करता है / 5. हेतु-पूर्वक छद्मस्थमरण मरता है (77) / ७८--पंच हेऊ पण्णता, तं जहा–हेउणा जाणइ जाव (हेउणा पासइ, हेउणा बुज्झइ, हेउणा अभिगच्छइ), हेउणा छउमस्थमरणं मरइ / पुनः पांच हेतु कहे गये हैं। जैसे-- 1. हेतु से (सम्यक् ) जानता है / 2. हेतु से (सम्यक् ) देखता है। 3. हेतु से (सम्यक् ) श्रद्धा करता है। 4. हेतु से (सम्यक् ) प्राप्त करता है / 5. हेतु से (सम्यक् ) छद्मस्थमरण मरता है (78) / يا بلدي अहेतु-सूत्र ७६--पंच आहेऊ पण्णत्ता, तं जहा–अहेउं ण जाणति, जाव (अहेउं ण पासति, प्रहेउं ण बुज्झति, आहे णाभिगच्छति), अहेउं छउमत्थमरणं मरति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org