________________ 456 ] [ स्थानाङ्गसूत्र 2. तिक्त, कटुक, कषाय, अम्ल और मधुर रस वाला (28) / तैजस शरीर पांच वर्ण, पांच रस वाला कहा गया है / जैसे१. कृष्ण, नील, लोहित, हारिद्र और श्वेत वर्ण वाला। 2. तिक्त, कटुक, कषाय, अम्ल और मधुर रस वाला (26) / कार्मण शरीर पांच वर्ण और पांच रस वाला कहा गया है / जैसे१. कृष्ण, नील, लोहित, हारिद्र और श्वेत वर्ण वाला। 2. तिक्त, कटुक, कषाय, अम्ल और मधुर रस वाला (30) / ३१-सव्वेवि णं बादरबोंदिधरा कलेवरा पंचवण्णा पंचरसा दुगंधा अट्ठफासा / सभी बादर (स्थूल) शरीर के धारक कलेवर पांच वर्ण, पांच रस, दो गन्ध और पाठ स्पर्श वाले कहे गये हैं (31) / विवेचन-उदार या स्थूल पुद्गलों से निर्मित, रस, रक्तादि सप्त धातुमय शरीर को औदारिक शरीर कहते हैं / यह मनुष्य और तिर्यग्गति के जीवों के ही होता है / नाना प्रकार के रूप बनाने में समर्थ शरीर को वैक्रिय शरीर कहते हैं। यह देव और नारकी जीवों के होता है / तथा विक्रियालब्धि को प्राप्त करने वाले मनुष्य, तिर्यचों और वायुकायिक जीवों के भी होता है / तपस्याविशेष से चतुर्दश पूर्वधर महामुनि के आहारकलब्धि के प्रभाव से प्राहारकशरीर उत्पन्न होता है / जब उक्त मुनि को सूक्ष्म तत्व में कोई शंका उत्पन्न होती है, और वहाँ पर सर्वज्ञ का अभाव होता है, तब उक्त शरीर का निर्माण होकर उसके मस्तक से एक हाथ का पुतला निकल कर सर्वज्ञ के समीप पहुँचता है और उनसे शंका का समाधान पाकर वापिस आकर के मुनि के शरीर में प्रविष्ट हो जाता है। इस शरीर का निर्माण, निर्गमन और वापिस प्रवेश एक मुहूर्त के भीतर ही हो जाता है। जिस शरीर के निमित्त से शरीर में तेज, दीप्ति और भोजन-पाचन को शक्ति प्राप्त होती है, उसे तैजसशरीर कहते है। यह दो प्रकार को होता है-१. निस्सरणात्मक (बाहर निकलने वाला) और 2. अनिस्सरणात्मक (बाहर न निकलने वाला) / निस्सरणात्मक तैजस शरीर तो तेजोलब्धिसम्पन्न मुनि के प्रकट होता है, और वह शाप और अनुग्रह करने में समर्थ होता है। अनिस्सरणात्म शरीर सभी संसारी जीवों के होता है। कमों के बीजभूत उत्पादक शरीर को, या पाठे समुदाय को कार्मण शरीर कहते हैं। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि औदारिक शरीर से आगे के शरीर उत्तरोत्तर सूक्ष्म होते हैं, किन्तु उनके प्रदेशों की संख्या आहारक शरीर तक असंख्यातगुणित और आगे के दोनों शरीरों के प्रदेश अनन्त गुणित होते हैं / तैजस और कार्मण शरीर सभी संसारी जीवों के सर्वदा ही पाये जाते हैं। केवल ये दोनों शरीर विग्रहगति में ही पाये जाते हैं। शेष समय में उनके साथ औदारिक शरीर मनुष्य-तियंचों में, तथा वैक्रिय शरीर देव-नारकों में, इस प्रकार तीन-तीन शरीर पाये जाते हैं। विक्रियालब्धिसम्पन्न मनुष्य तिर्यंचों के, या अाहारकलब्धिसम्पन्न मनुष्यों के चार शरीर एक साथ पाये जाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org