________________ पंचम स्थान-प्रथम उद्देश ] [446 ५-पंच कामगुणा पण्णत्ता, तं जहा–सद्दा, रूवा, गंधा, रसा, फासा / कामगुण पांच कहे गये हैं। जैसे१. शब्द, 2. रूप, 3. गन्ध, 4, रस, 5. स्पर्श (5) / ६-पंचर्चाह ठपणेहि जीवा सज्जति, तं जहा-सहि, स्वेहि, गंधेहि, रसेहि, फासेहिं / पांच स्थानों में जीव आसक्त होते हैं / जैसे१. शब्दों में, 2. रूपों में, 3. गन्धों में, 4. रसों में, 5. स्पर्शों में (6) / ७-एवं रज्जंति मुच्छंति गिझंति प्रज्झोववज्जति / (पंचहि ठाणेहिं जीवा रज्जंति, त जहा--सद्देहि, जाव (स्वेहि, गंधेहि, रसेहिं), फासेहिं / ८-पंचहि ठाणेहिं जोवा मुच्छंति, तं जहासहि, रूवेहि, गंधेहि, रसेहि, फासेहिं / —पंचहि ठाणेहि जीवा गिज्झति, त जहा--सद्देहि, रूवेहि, गंधेहि, रसेहि, फासेहि। १०-पंचहिं ठाणेहिं जीवा अज्झोववज्जति, त जहा—सद्देहि, रूबेहि, गंहि, रसेहि, फासेहिं / पांच स्थानों में जीव अनुरक्त होते हैं / जैसे१. शब्दों में, 2. रूपों में, 3. गन्धों में, 4. रसों में, 5. स्पर्शों में (7) / पांच स्थानों में जीव मूच्छित होते हैं / जैसे--- 1. शब्दों में, 2. रूपों में, 3. गन्धों में, 4. रसों में, 5. स्पर्शो में (8) / पांच स्थानों में जीव गृद्ध होते हैं / जैसे१. शब्दों में, 2. रूपों में, 3. गन्धों में, 4. रसों में, 5. स्पर्शों में (8) / पांच स्थानों में जीव अध्युपपन्न (अत्यासक्त) होते हैं / जैसे१. शब्दों में, 2. रूपों में, 3. गन्धों में, 4. रसों में, 5. स्पर्शों में (10) / ११--पंचहि ठा!ह जीवा विणिघायमावति, त जहा—सद्देहि, जाव (रूवेहि, गंधेहि, रसेहि), फासेहि। पांच स्थानों से जीव विनिघात (विनाश) को प्राप्त होते हैं / जैसे१. शब्दों से, 2. रूपों से, 3. गन्धों से, 4. रसों से, 5. स्पर्शों से, अर्थात् इनकी अति लोलुपता के कारण जीव विघात को प्राप्त होते हैं (11) / १२–पंच ठाणा अपरिग्णाता जीवाणं अहिताए असुभाए अखमाए अणिस्सेस्साए प्रणाणुगामियत्ताए भयंति, त जहा-सदा जाव (रूवा, गंधा, रसा), फासा / अपरिज्ञात (अज्ञात और अप्रत्याख्यात) पांच स्थान जीवों के अहित के लिए, अशुभ के लिए, अक्षमता (असामर्थ्य) के लिए, अनिःश्रेयस् (अकल्याण) के लिए और अननुगामिता (अमोक्ष-संसारवास) के लिए होते हैं / जैसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org